History of Shri Ram Janmabhoomi Temple | श्रीराम जन्मभूमि मंदिर

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History of Shri Ram Janmabhoomi Temple |श्रीराम जन्मभूमि मंदिर : विश्व मे शांति , प्रेम ,सद्भाव का सांस्कृतिक स्मारक है ।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर : विश्व मे शांति , प्रेम ,सद्भाव का सांस्कृतिक स्मारक है ।

Shri Ram Janmabhoomi Temple

आज जब 492 वर्षों के अनथक युद्ध , लाखों लोगों के बलिदान , जीवन और जवानी खपाने के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर भाद्रपद कृष्ण द्वितीया विक्रम संवत २०७७ , युगाब्द ५१२२दिन – बुधवार तद्नुसार दिनांक 05अगस्त 2020 ईस्वी से बनने जा रहा है तो हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि मैं इसके पीछे के रहस्यों को आप सभी के बीच रख दूँ ।

यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी इस लिये है कि मैं इस सम्पूर्ण महाभियान का एक हिस्सा रहा हूँ ।  वर्तमान की परिस्थितियों को देख कर मुझे लगता है कि भावी पीढ़ी तक इसके सत्य को पहुँचाने का प्रयास करनेवाले लोग भटक सकते हैं ।

राममंदिर – राष्ट्रमंदिर ।


History of Shri Ram Janmabhoomi Temple |श्रीराम जन्मभूमि मंदिर

इसके सत्य के तथ्य को समझने के लिए हमें अयोध्या को भी जानना होगा , जिसका अर्थ है , वह भूमि जहाँ युद्ध नहीं होता है ।

उस भूमि पर 492 वर्षों तक साधु- संयासी , राजा , बादशाह , मीर उमरांव एक मंदिर ( उपासना स्थल ) के मरते-कटते रहे , आखिर क्यों ?

इसका दूसरा तथ्य है – राम , राम कौन हैं ? क्या अयोध्या के राजा दशरथ का एक राजकुमार राम हैं , जिनके जन्म स्थान के लिए वैश्विक इतिहास का सबसे बड़ा , सबसे लम्बे समय तक युद्ध

चलता रहा , लाखों लोग बलिदान होते रहे ?

एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से मैं सभी भारतीयों को विशेष रूप से जो स्वयं को सनातनी हिंदू और स्वयं को तथागत बुद्ध का अनुयायी कहते हैं , उनको बताना चाहता हूँ कि प्रभु श्रीराम , योगेश्वर श्रीकृष्ण एवं तथागत बुद्ध जो इस भारत भूमि पर पैदा हुए थे , यह वैश्विक महामानव महापुरुष हैं और इन्होंने विश्व के कल्याण के लिए जन्म लिया था ।

सभी धर्मों , उपासना पद्धति को मानने वाले लोगों के लिए यह पूज्य हैं । इनको किसी देश या उपासना पद्धति के पंथ में बाँधकर नहीं रखा जा सकता है । एशिया अफ्रीका महाद्वीप के ज्यादातर देशों में इन्हें विभिन्न नाम रुप मे पूजा जाता है ।

जिसे बाबरी मस्जिद का ढ़ाचा कहा जाता है , उसपर भी मीरबांकी ने अरबी में लिखवाया था ” फरिश्तों के उतरने की जगह “

इन महापुरुषों को खान – पान ,परिधान के खांचे मे भी नहीं बाँधा जा सकता है । कुरान ए पाक मे भगवान श्री कृष्ण को पैगंबर माना गया है । ईसाई पंथ के संस्थापक

प्रभु ईसामसीह ने बौद्धधम्म के एक लामा से ज्ञान प्राप्त किया था ।

प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा जाता है , इन्होंने परिवार से लेकर विश्व को मानवीय मूल्यों की स्थापना की , सौतेली माँ कैकेयी को सर्वाधिक सम्मान दिया , पिता के वचनों का पालन करने राजमहल और राज्य छोड़कर जंगल में गए , बालि  , रावण पर विजय प्राप्त किया किन्तु राज्य इनके भाइयों को सौंप दिया था ।

History of Shri Ram Janmabhoomi Temple |श्रीराम जन्मभूमि मंदिर

अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिये यह युद्ध और आन्दोलन कदापि नहीं होता , अगर मीरबांकी इस स्थान पर बने प्राचीन आस्था स्थल का मान भंग नहीं करता , उसने जो बाबरी मस्जिद बनाई अगर उसे सभी पंथों को मानने वाले लोगों के लिए उन्मुक्त कर दिया जाता तो भी यह परिस्थिति नहीं होती । उसने ही इस पवित्र स्थान को मजहब की दीवारों में कैद कर यह विवाद उत्पन्न किया था । राम सभी के हैं , वह एक वैश्विक राष्ट्रपुरुष हैं , अनुकरणीय जीवन दर्शन हैं ।

इस स्थान से मजहबी ढ़ाचे को हटाने का पहला प्रयास निहंग सिक्खों ने किया था , राम इनके भी आराध्य हैं ।

यह केवल एक मंदिर नहीं बन रहा है , कोई भी इस भ्रम में बिलकुल नहीं रहे , यह एक वैश्विक राष्ट्रमंदिर बनने जा रहा है , जिसपर सभी मत – मजहब , खानपान , परिधान के लोगों को प्रवेश पूजा का अधिकार प्राप्त होगा ।

विश्व हिंदू परिषद ने भी प्रारंभ से ही इस विषय पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट रखा है । श्री राम महायज्ञ , श्रीराम शिलापूजन , श्रीरामजानकी रथयात्रा , कारसेवा सभी समयों पर सभी मत – मजहब , सम्प्रदायों , वर्ण , जातियों की सहभागिता के लिये प्रयास किया गया , उन्हें सम्मान सहित जोड़ा गया है ।

इसी के तहत 10नवम्बर 1989 को मंदिर का शिलान्यास अनुसूचित समाज के श्री कामेश्वर चौपाल के हाथों कराया गया था । जब मंदिर का निर्माण शुरू किया जा रहा है तो भाद्रपद मास का बुधवार दिन निश्चित किया गया है ।

एक नजर आन्दोलन पर 


1964 में विश्व हिंदू परिषद का गठन हुआ था । इसके दो साल बाद 1966 में अपने सार्वजनिक सत्र में विहिप ने पहली बार अयोध्या में रामजन्मभूमि पर समस्त हिंदुओं की तरफ से दावा ठोंका

1978 में दिल्ली में अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि को पहली बार राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का निर्णय किया गया था । विहिप ने इस मसले पर साधु-संतों का समर्थन जुटाने के लिए धर्म संसद का आयोजन किया, जिसमें देश भर से साधु-संत जुटे ।

1984 के जून महीने में रामजन्मभूमि यज्ञ का आयोजन किया गया. इसे जनआंदोलन बनाने के लिए अक्टूबर 1984 में ही एक अभियान शुरू किया गया ।

जो हिन्दू हित की बात करेगा , वही देश पर राज करेगा ।
इसके साथ ही विहिप ने हिंदुओं का आह्वान करते हुए सिर्फ उन्हीं नेताओं को वोट देने को कहा, जो हिंदू हितों की बात करें । इसमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण प्रमुख तौर पर शामिल था ।
1985 में विहिप ने राम जानकी रथ यात्रा निकाली. इस रथ यात्रा में राम-जानकी को 1949 से सलाखों के पीछे दिखाती झांकी ने हिंदू समाज को उद्वेलित करने का काम किया ।
यह रथयात्रा बिहार के सीतामढी जिले में स्थित जानकी मंदिर से प्रारंभ होकर अयोध्या पहुँची थी । इसके लिये अनेक प्रभारी बनाए गए थे , जिसमें आजमगढ़ जिले के तत्कालीन संघ के

जिलाप्रचारक श्री विजय नारायण द्विवेदी उ.प्र. के प्रभारी थे ।

मैं इस रामजानकी रथयात्रा में इसके पहुँचने , विश्राम स्थल और चढ़ावे के पैसों को अयोध्या भेजने की व्यवस्था करने का काम देखता था । यह सारी व्यवस्था स्थानीय कार्यकर्ताओं के माध्यम से करायी जाती थी ।

लोकतंत्र की देखो शान – बंदी बने हुए भगवान ।

1986 की फरवरी में फैजाबाद जिला जज के आदेश पर बाबरी मस्जिद के ताले खोले गए । इस घटनाक्रम को हिंदुओं ने अपनी जीत माना और उन्हें लगा कि अंततः अयोध्या का पवित्र स्थान मुक्ति की ओर बढ़ा ।

1988 में 11 अक्टूबर को विहिप ने अयोध्या में श्रीराम महायज्ञ के आयोजन की घोषणा की. पांच दिन चले इस महायज्ञ में लाखों हिंदुओं ने हिस्सा लिया. यह महायज्ञ वास्तव में ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के अयोध्या में नमाज पढ़ने की घोषणा के जवाब में आयोजित किया गया था ।

1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान महा संत सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें कहा गया कि विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा ।

1989 में 11 जून को भारतीय जनता पार्टी ने पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण से जुड़ी विहिप की मांग को अपना समर्थन प्रदान किया ।

सवा रुप्पया दे दे भैय्या रामप्रभु नाम का …
राममंदिर लग जाएगा पत्थर तेरे नाम का
…..

इसके लिए श्रीराम शिलापूजन का कार्यक्रम चलाया गया , जिसके लिये मुझे बलिया जिले का प्रभारी बनाया गया था ।श्रीराम लिखी हुई ईंटों का पूजन कराया जाता था ।

10 नवम्बर 1989 ईस्वी को भारी तनाव के बीच बिहार के अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता श्री कामेश्वर चौपाल के कर-कमलों द्वारा श्रीरामजन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास स्व. अशोक सिंहल जी , पूज्य संत रामचन्द्र परमहंस जी , महंथ नृत्यगोपाल दास जी इत्यादि हजारों संत – महात्माओं और रामभक्तों की उपस्थिति मे सम्पन्न हुआ ।

1990 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी जी के नेतृत्व में विहिप ने राम रथ यात्रा शुरू की, जिसके बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रोक दिया था. इसके बाद कई इलाकों में दंगे हुए. खासकर अयोध्या में सरयू के तट पर भी कारसेवकों पर शक्ति प्रदर्शन किया गया. हालांकि इस रथ यात्रा से अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को नई धार मिल गई ।

रामलला हम आयेंगे , मंदिर वहीं बनाएंगे ।

जब उत्तरप्रदेश में श्री कल्याण सिंह जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी । उस समय कारसेवा आन्दोलन चला ।

1992 में 6 दिसंबर को अंततः कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया । इसके बाद देश भर में सांप्रदायिक दंगे फैल गए. हालांकि अदालती हस्तक्षेप के बाद मामला कानूनी तौर पर दर्ज हुआ ।

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शिवकुमार सिंह कौशिकेय


– शिवकुमार सिंह कौशिकेय ।

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