First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

Join WhatsApp group Join Now

First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

1942 की अगस्त क्रांति मे बागी बलिया की कहानी

1942 अगस्त क्रांति बलिया की कहानी
21 अगस्त 1942

★सिकन्दरपुर थाने पर अधिकार ।
★गड़वार थाने पर कब्जा ।
★खूनी डिप्टी कलक्टर जनता के फन्दे में ।
★अंग्रेजी फ़ौज का जल – थल मार्ग से बलिया कूच ।

ब्रितानी साम्राज्य के प्रशासन को केवल जनबल का दर्शन कराकर पदच्युत करने वाले बलियावासियों ने खुद तो अपने सीने पर पुलिस की गोलिया खाई। बलिया शहर, रसड़ा और बैरिया में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा चलायी गयी गोली से 32 क्रान्तिवीर शहीद हुए। सिकन्दरपुर में थानेदार ने छोटे-छोटे बच्चों पर घोड़ा दौड़ाया। सैकड़ों स्वतंत्रता सैनिकों को घोर आमानुषिक यातनाएं दी गयी।

विद्यार्थियों युवाओं को रात में गिरफ्तार करके उन्हे पेड़ों पर लटकाकर कोड़ों से पीटा गया। उनके गुप्तांगों को पत्थरों पर रकड़कर उन्हे नपुंसक बनाने की कोशिश की गयी।

लेकिन इन क्रान्तिवीरों ने  किसी अधिकारी, कर्मचारी अथवा उनके परिवारजनों को पकड़ने के बाद भी उनकी जान नहीं लिया। मु0 औबेस जैसे क्रूर अधिकारी को कान पकड़कर उठक-बैठक कराकर छोड़ दिया।

First Independent City of India August 1942
First Independent City of India August 1942

19 अगस्त को अगर जनता चाही होती तो जिले में ब्रिटिश प्रशासन का कोई अधिकारी- कर्मचारी जिन्दा नहीं बच पाता। यद्यपि की गरमदल के युवा कार्यकर्ता केवल नेताओं की रिहाई और कलक्टर-कप्तान के आत्मसमर्पण से संतुष्ट नहीं थे।

वह पूरी तरह से जिला मुख्यालय के सभी सरकारी कार्यालयों पर अधिकार करने और आन्दोलनकारियों पर अत्याचार करने वाले सरकारी अमले को जिले की सीमा से बाहर खदेड़ना चाहते थे। लेकिन रिहा हुए नेता ब्रितानी शासन के खैरख्वाहों और अधिकारियों के बहकावे की साजिश का शिकार हो चुके थे।

आज सुबह जिला प्रशासन ने अपनी जान की कीमत पर हुआ समझौता को तोड़ दिया। पुलिस का एक दल बलिया शहर में घुंस आया और उन्होने मालगोदाम और बालेश्वर मन्दिर के पास अपनी हनक जमाने की गरज से अकारण गोलियां चला दिया। जिसमे कारों में वृद्ध रिटायर्ड पेंशकार श्री मोहितलाल और एक अन्य व्यक्ति मारे गये।

इस खबर के फैलते ही लोग नरम दल के नेताओं को कोसने लगें। जिन्होने युवा वर्ग के द्वारा निर्धारित कलक्टर श्री जे0 निगम और पुलिस कप्तान श्री जियाउद्दीन अहमद को बन्दी बना उनके कार्यालय पर कब्जा करने की योजना को पूरा नहीं होने दिया।

First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

सिकन्दरपुर थाने पर अधिकार

आज दोपहर 12बजे दिन में श्री शिवपूजन सिंह (हरदिया) श्री हीरा राय (लिलकर), श्री बलदेव प्रसाद (बालूपुर), श्री लक्षन चौधरी (पुरूशोत्तम पट्टी), श्री छोटे लाल (पन्दह), तथा श्री स्वामीनाथ सिंह (महथापार) आदि नेताओं के नेतृत्व् में बीस हजार से भी अधिक का जनसमूह सिकन्दरपुर थाने पर आ धमका।

स्कूली बच्चों पर मिडिल स्कूल में घोड़ा दौड़ाने वाले थानेदार अशफाक हुसेन और यहां तैनात सिपाहियों को इस बात का इल्म था, कि यहॉ की जनता हमारे साथ क्या सलूक करने वाली है।

इन लोगों ने रात में ही अपने परिवार वालों को सामान सहित चुप्पे चोरी कोथ के सैय्यद बरूस्सलाम के घर पंहुचा दिया था। इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाते जैसे ही भीड़ थाने पर पंहुची। थानेदार ने थाने के अभिलेख सहित पुलिस की वर्दियां और बन्दूकें थाने की चाबी श्री शिवपूजन सिंह को सौंप दिया।

थाने पर तिरंगा फहरा दिया गया। तथा थानेदार को थाने को छोड़कर चले जाने का आदेष दिया गया। जिसे उसने तुरन्त मान लिया। लेकिन थाने पर कब्जा होने के साथ ही भीड़ बेकाबू हो गयी।

विजय और गुस्से में पागल बने लोगों ने सिकन्दरपुर पुलिस चौकी को लूटकर उसमें आग लगा दिया। बीज गोदाम को लूट लिया। मवेशीखाना के पशुओ को आजाद कर दिया। थाने की इमारत को तहस नहस कर दिया।


ऐसे ही नवानगर में पड़ोस के गांव से जुट़ी जनता ने प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों को साथ लेकर डाकघर फूंक दिया। हुसेनपुर में गांजे की दुकान का सारा गांजा फूंक दिया। कोथ में मवेशी खाना और पंचायत के कागजात फूंंक दिये गये।

First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

गड़वार थाने पर कब्जा ।

स्वराज सरकार द्वारा नियुक्त श्री महानन्द मिश्र और श्री विश्वनाथ चौबे गड़वार थाने पर अधिकार करने पंहुचे। लेकिन इनके पंहुचने से पहले ही गड़वार के थानेदार श्री वंशगोपाल सिंह ने एक दिन पूर्व ही थाना खाली कर दिया था। वह थाने के सारे सामान सहित बुढ़ऊ गांव में जा छिपे थे। थाने पर कहने के लिए 4-5 सिपाही थें, जिनको बाहर करके श्री शिवपूजन सिंह और श्री जगमोहन सिंह ने जनता केा ललकार कर थाने की इमारत में आग लगवा दिया था।

वहां की स्थिति को देख समझकर श्री मिश्र और श्री चौबे जी थानेदार से थाने का सामान जमा कराने बुढऊ पंहुच गये। थानेदार श्री राजदेव सिंह के घर में छिप बैठे थे। बुलाने पर बाहर आये और भारी भीड़ देख उनकी सारी हिकमत फेल हो गयी।

उन्होने थाने की एक बन्दूक, अपना रिवाल्वर, कुछ भाले, कारतूस, हथकड़ी और कागजात इन क्रान्तिकारी नेताओं के हवाले कर दिया।

First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

डिप्टी कलक्टर जनता के फन्दे में

डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह जिन्हे कलक्टर ने 18 अगस्त को कमिश्नर वाराणसी के यहां फौजी सहायता के लिए संदेशवाहक बनाकर भेजा था। आज अपनी उसी पं0 काषीनाथ मिश्र द्वारा उपलब्ध करायी गयी कार से बलिया लौट रहें थे। इसी राम लगन सिंह डिप्टी कलक्टर ने 16 अगस्त को गुदरी बाजार में गोली चलवायी थी, जिसमे 9 लोग शहीद हुए थे।

गड़हा क्षेत्र के क्रान्तिकारियों को यह बात पहले से मालूम थी, और वह जानते थें कि वह इसी रास्ते से वापस लौटेंगे। सबेरे आठ बजे जैसे ही लक्ष्मणपुर गांव के पास उनकी कार पंहुची लोग चिल्लाने लगें। इहे ह•- इहे ह• कुछ लोग साइकिल से पीछा करने लगें साथ में आगे वालों से घेरने को भी कह रहें थे। श्री सिंह ने ड्राइवर को तेजी से भागने को कहा, लेकिन नरहीं गांव के क्रान्तिकारी तो उनके लिए 19 तारीख से ही फन्दा लगाये बैठे थें।

श्री बृजनन्दन राय, श्री जगत नारायण लाल ने अपने गांव के मगई नदी पुल के पास सड़क खोंदकर, पुल पर इस कार को पकड़ने के लिए पहरा बैठा रखा था।

जब डिप्टी साहब अपनी कार से यंहा पंहुचे तो पहरे पर तैनात कार्यकर्ता हल्ला करने लगें। ड्राइवर ने खोदी हुई सड़क पर पटरा लगा कर खाई पार करने की कोशिश किया। लेकिन कार खुदी हुई खाई में जा गिरी। इतने में जनता पंहुच गयी। जनता ने फन्दे में फंसी कार को घेर लिया।

डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह जो इस समय भेष बदलकर खादी का कुर्ता पैजामा पहने हुए थें, कार पर भी तिरंगा लगा रखा था। ताकि बलवाई जनता धोखा खा जाये।

कार से निकलकर नरहीं गांव की ओर भागने लगे। किन्तु जनता ने पकड़ लिया। ड्राइवर और सिपाही भी बन्दी बना लिये गये। इन लोग से एक बन्दूक 14 कारतूस, तथा एक रिवाल्वर मय 36 कारतूस के छीन लिया गया।

First Independent City of India | Revolution of Ballia August 1942

बलिया के गुदरी बाजार में खून की होली खेलने वाले इस देशद्रोही डिप्टी कलक्टर को इस बहरूपिया वेश में देख जनता का खून खौल रहा था। लोग उस पर थप्पड़ चला रहें थें, वह हाथ जोड़कर जान की भीख मांग रहा था। तभी किसी ने दो लाठी जमा दिया। वह भागकर एक बुढ़िया के घर में घुंस गया। बुढ़िया के यह कहने पर कि मैं इसे भागने नहीं दूंगी भीड़ ने जान छोड़ी।

बलिया से भेजे गये नेता श्री राम जी तिवारी और नरहीं के नेता श्री लक्ष्मी शंकर त्रिवेदी ने प्रशासन को आन्दोलनकारियों के खिलाफ मंगनी में कार देने वाले राय बहादुर पं0 काषीनाथ मिश्र की कार को मौके पर ही फूंक दिया गया। रात में नरहीं के रईस चौधरी धर्मदेव राय, बुढ़िया के यहां से डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह को अपने घर ले गये। जहां तीन दिनों तक वह छिपे रहें।

वैसे भी इस आन्दोलन मे जनता के पक्ष द्वारा किसी भी सरकारी अधिकारी कर्मचारी को जान से नहीं मारा गया था। उनके परिवार वालों से तो किसी ने बदसलूकी भी नहीं किया। सभी जानते थें कि यह भी हमारी तरह भारतीय है, जो कुछ भी ये लोग कर रहें हैं, ब्रिटिश शासकों की गुलामी की नौकरी के कारण कर रहें है।

उधर ब्रिटिश गवर्नर को जैसे ही बलिया जिले के कलक्टर श्री जे0 निगम द्वारा विशेष सदेश वाहक श्री रामलगन सिंह के हाथों कमिश्नर वाराणसी को भेजी रिपोर्ट से बलिया जिले में बगावत की खबर मिली।

प्रान्त के अंग्रेज गवर्नर मि0 हैलेट तिलमिला उठे। उन्होने तत्काल नेदरसोल नाम के एक क्रूर अधिकारी को विषेशाधिकार देते हुए सर्वोच्च प्रशासक नियुक्त कर बलिया रवाना कर दिया।

नेदरसोल को गवर्नर ने बलिया पर पुन: अधिकार करने के लिए अपनी सारी शक्तियों का उपयोग करने हेतु प्रतिनिहित अधिकार सौंप दिया था।

सेना की एक टुकड़ी के साथ उखड़ी हुर्इ रेल लाइनों को ठीक करते हुए नेदरसोल ने बलिया कूच किया। उसकी सहायता करने के लिए जलमार्ग से मार्क स्मिथ के नेतृत्व में दूसरी फौजी टुकड़ी भी बलिया की ओर चल पड़ी।

आजमगढ़ की ओर से भी कैप्टन मूर भी अंग्रेजी फौज के साथ बलिया की ओर बढ़ने लगे।

साभार : उ0प्र0 राजकीय अभिलेखागार लखनऊ के क्षेत्रीय अभिलेखागार वाराणसी द्वारा प्रकाशित पुस्तक
” 1942 की अगस्त क्रांति और बलिया ” लेखक – शिवकुमार सिंह कौशिकेय

History of Ballia Wikipedia Click Here

Join WhatsApp group Join Now

Leave a Comment