Kashi Vishwanath Mandir History in Hindi काशीपुराधिपति विश्वेश्वर बाबा विश्वनाथ मंदिर वाराणसी का इतिहास ।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
ज्ञानवापी मस्जिद, मस्जिद नहीं मंदिर है , काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था, मुगल सम्राट औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669, को बनारस के “काशी विश्वनाथ मंदिर” तोड़ने का आदेश जारी किया था, जिसका पालन कर अगस्त 1669, को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था । उस आदेश की कॉपी आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित रखी हुयी है।
धर्मांध मुग़ल शासक औरंगजेब ने हिन्दुओं के श्रध्दा और आस्था के केंद्र बनारस सहित प्रमुख तीर्थ स्थलों के मंदिरों को अपने शासन काल में तोड़ने और हिन्दुओं को मानसिक रूप से पराजित करने के हरसंभव प्रयास किये।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है । यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है, इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।
ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरिशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था।
उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया।
पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
इस्लामिक इतिहासकार साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई,
2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी, औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था, आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू है
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए, 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया ।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था, अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया, ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है, 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था,
लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया, इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं, मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।
लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे, 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है। kashi vishwanath mandir history in hindi
औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था, लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए, हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था, जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं।
पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है कि वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है, और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं, जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं, ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है, और मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है!
काशी विश्वनाथ मंदिर का मुकदमा मुस्लमान हार चुके है ।
11 अगस्त, 1936 को दीन मुहम्मद, मुहम्मद हुसैन और मुहम्मद जकारिया ने स्टेट इन काउन्सिल में प्रतिवाद संख्या-62 दाखिल किया और दावा किया कि सम्पूर्ण परिसर वक्फ की सम्पत्ति है। लम्बी गवाहियों एवं ऐतिहासिक प्रमाणों व शास्त्रों के आधार पर यह दावा गलत पाया गया और 24 अगस्त 1937 को वाद खारिज कर दिया गया।
इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील संख्या 466 दायर की गई लेकिन 1942 में उच्च न्यायालय ने इस अपील को भी खारिज कर दिया। कानूनी गुत्थियां साफ होने के बावजूद मंदिर-मस्जिद का मसला आज तक फंसा कर रखा गया है।
– शिवकुमार सिंह कौशिकेय ।
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