Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 8

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Revolution of Ballia | History of Ballia | Baaghi Ballia Revolution भाग 8

खुशी की मिठाई जान पर बन आई

इस रक्तहीन विजय से गदगद रसड़ा “ाहर के प्रमुख व्यवसायी श्री गुलाबचन्द के छोटे भार्इ श्री ठाकुर दास (वकील साहब) ने मिठार्इ खाने के लिए जनसमूह को अपने अहाते में बुला लिया, पूरा अहाता भीड़ से खचाखच भर गया।

उस समय सरकारी बीज गोदाम, इम्पीरियल बैंक और उक्त वस्त्र व्यवसायी की कपड़े की गांठे उसी अहाते में पड़ी थी, भीड़ को देखकर किसी ने श्री गुलाबचन्द को बता दिया कि कुछ लोग आपका गोदाम लूटने गए है, गुलाबचन्द जी को “ाायद अपने भार्इ द्वारा इन लोगों को मिठार्इ खिलाने के लिए बुलाए जाने की बात नहीं मालूम थी।

वह थानेदान के पास पहुंचे, तहसीलदार और नायब थानेदार के मना करने के बाद भी थानेदार जो आन्दोलन से खफा था, वह नायब तहसीलदार को साथ लेकर 8 सषस्त्र सिपाहियों और बीसियों रम्भा लिए मुसहरों को लेकर खुद घोड़े से श्री गुलाबचन्द के अहाते को घेर लिया, अहाते का गेट बन्द करके भीड़ पर पत्थर और गोली चलवाने लगा।

मिठार्इ की प्रतीक्षा में मिली मार से भीड़ भागना चाही तो गेट बन्द मिला। थानेदार द्वारा चलवार्इ गर्इ गोली से, श्री हरि चमार (सुल्तानपुर) श्री विष्वनाथ राम तथा श्री श्रीकृश्ण मिश्र (मलप) सहित छ: लोग “ाहीद हो गए और सैकड़ों बुरी तरह घायल हुए।

किसी तरह खुरूॅवाअ के इन्द्रदेवसिंह नाम के बहादुर युवक ने एक जंगले को तोड़ कर दूसरा रास्त बनाया। जिससे कुछ लोगों की जान बची, थानेदार ने श्री इन्द्रदेव सिंह के घुटने पर गोली मार कर गिरफ्तार कर लिया, जिन्हें उसी दिन भीड़ ने छुड़ा भी लिया।

श्री इन्द्रदेव सिंह इस आन्दोलन में ‘‘लाल कुर्ती वाला’’ के नाम से मषहूर हुए।

Revolution of Ballia | History of Ballia | Baaghi Ballia Revolution भाग 8

बॉसडीह- जिस प्रकार से देष के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में बलिया का इतिहास स्वर्णाक्षरों में अंकित है, वैसे ही बलिया जिले के स्वतंत्रता आन्दोलन में बॉसडीह तहसील का इतिहास अंकित है, तहसील के रेवती में स्वराज का “ाासन “ाान से चल रहा था। सहतवार थाने पर तिरंगा लहरा रहा था।

आज बीस हजार से भी अधिक क्रांतिकारियों की सषस्त्र भीड़ बॉसडीह थाने के सामने खड़ी हो गयी, इस जन सैलाब से श्री गजाधर “ार्मा (बंकवा), श्री सूरज सिंह एवं श्री राम दयाल सिंह (कैथवली), श्री रणबहादुर सिंह (सूरजपुरा), श्री केदार सिंह (देवदी) और श्री वृन्दा सिंह (सकरपुरा) ने निकलकर थानेदार को थाने से बाहर आने का आदेष दिया।

हथियारों से लैस इस विषाल जनसागर को देख भय से काप रहे थानेदार श्री छविनाथ सिंह ने तत्काल आदेष का पालन किया। नेताओं के आदेष पर थानेदार ने थाने पर अपने हाथों राश्ट्रीय तिरंगा फहराया और उसके नीचे खड़े होकर स्वराज सरकार के प्रति निश्ठा की “ापथ लिया।

इसी खुषी के मौके पर थाने में रखी डाकघर की तिजोरी को खोलकर उसमें रखे रूपयों को बॉट दिया गया। थाने में उस वक्त मात्र एक बन्दूक थी, उसे श्री गजाधर “ार्मा को सौंप कर थानेदार श्री छविनाथ सिंह ने सिर पर गांधी टोपी लगाया और हाथ में तिरंगा लिए भीड़ के आगे-आगे तहसील कार्यालय पहुंचे, प्रभारी तहसीलदार श्री राजेन्द्र्र सिंह, नायब तहसीलदार श्री लाल बहादुर सिंह ने जब यह नजारा देखा तो हतप्रभ हो गए।

एक सषस्त्र हवलदार प्रतिरोध करने का उद्यत दिखा तो श्री रामसेवक सिंह (चांदपुर) ने पहलवानी वाला हाथ दिखाते हुए भोजपुरी में समझा दिया कि- इहां से असमान मे उड़ि के तू इग्लैण्ड ना जा पइब बबुआ। हवलदार को बात समझ मे आ गर्इ थी।

पूरी तरह से रक्तहीन जनक्रांति द्वारा बांसडीह तहसील पर स्वराज “ाासन की स्थापना हो गयी। श्री गजाधर “ार्मा स्वतंत्र भारत के प्रथम तहसीलदार बनाए गए।

उन्होंने सभी ब्रितानी साम्राज्य के अधिकारियों कर्मचारियों को बर्खास्त करते हुए 24 घंटों के अन्दर थाना-कचहरी, सरकारी आवास खाली करने का आदेष दिया, और सभी सरकारी लोगों ने उसका पालन भी किया। तहसील गारद से बरामद चार बन्दूकें भी अब स्वराज “ाासन के पास थी।

बॉसडीह में हुर्इ इस विजय में तहसील के नायब नाजिर मुहम्मद सर्इद द्वारा दी गर्इ जानकारियों की भी बड़ी भूमिका रही।

इस अभियान में श्री रामेष्वर “ार्मा, श्री लक्ष्मण सिंह, श्री षिवकुमार लाल, श्री काषीनाथ राय, श्री जटाधारी पाठक, श्री सिराजुद्दीन अहमद, श्री जमुना सिंह, श्री सूरज सिंह, श्री डिग्री उपाध्याय, श्री सुधाकर पाण्डेय, श्री निरंजन सिंह, श्री कुलदीप सिंह, श्री गोपाल तिवारी, श्री रामचन्द्र लाल ‘मुख्तार’ श्री षिवदत्त प्रसाद, श्री रामजन्म सिंह, श्री राम सेवक तिवारी, श्री राम लक्षण पाण्डेय और श्री मथुरा प्रसाद की भूमिका उल्लेखनीय रही।

स्वायत “ाासन की व्यवस्था को चलाने के लिए श्री मथुरा प्रसाद, श्री निरंजन सिंह एवं श्री रामेष्वर “ार्मा की एक कमेटी बनी जो सारी व्यवस्था का संचालन करने लगी। बीज गोदाम का 1500 बोरा गेंहू एक रूपये का 10 सेर बेच कर “ाासन चलाने के लिए रकम जुटार्इ गर्इ।

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सहतवार- वैसे तो सहतवार थाने पर 11 अगस्त से ही युवा नेता श्री श्रीपति कुॅवर के नेतृत्व में आए जूलूस द्वारा थानेदार श्री हैदर को आत्मसमपर्ण करा कर लगावाया गया झण्डा लहरा रहा था। लेकिन आज थाने पर पूर्ण रूपेण अधिकार करने के लिए श्री श्रीपति कुॅवर ने जन सम्पर्क करना “ाुरू कर दिया।

18 अगस्त 1942 17 अगस्त को बांसडीह में रक्तहीन क्रान्ति की बदौलत मिली विजय ने जहां जनता में असीम जोष पैदा कर दिया था। वहीं भयभीत जिला प्रषासन को अब अपनी जान बचाने की जुगत लगानी थी।जिले भर में रेलवे स्टेषन फूंक दिये गये थें।

रेल पटरियां उखाड़ दी गयी थी। थानों पर जनता का अधिकार हो चुका था। सड़कों को जगह जगह काटकर यातायात भंग कर दिया गया था। गंगा और घाघरा नदियों के जल मार्ग पर क्षेत्रीय जनता निगहबानी कर रही थी। जहाज घाटों के स्टीमर या तो बहा दिए गये थें, नही ंतो डूबो दिए गये थे।

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