Revolution of Ballia | History of Bagi Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 9
बैरिया में खूनी संघर्ष 15 अगस्त को जब श्री भूपनारायण सिंह, श्री सुदर्षन सिंह आदि नेताओं के साथ 15 हजार से अधिक जनता थाने पर कब्जा करने पंहुची थी। तब थानेदार काजिम हुसेन ने खुद ही आत्म समर्पण कर थाने पर तिरंगा झण्डा फहरा कर, थाना खाली करने के लिए दो दिन की मोहलत लिया था।
लेकिन उसने उसी दिन बलिया से 5 सषस्त्र सिपाही मंगा लिया था। जो उसी दिन रात में पंहुच गये। अब थानेदार का दिमाग आसमान पर चढ़ गया था। उसने राश्ट्रीय झण्डे को उतारकर फेंकवा दिया। यह खबर जब सुबह से लोगों को मिलने लगीं तो लोगों में गुस्सा फैलने लगा।
जैसे-जैसे अपने तिरंगे के अपमान की खबर गांवों में पंहुचती थी, लोगों का खून खौलने लगता था। इसका बदला चुकाने की तारीख 18 अगस्त तय हुर्इ थी। आज दोपहर होते होते 25 हजार से भी अधिक द्वाबा के स्त्री-पुरूश, अबाल वृद्धों ने बैरिया थाने को घेर लिया।
इस जन सागर में उठती आजादी की लहरों का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि अपने हाथों में तिरंगे झण्डे लिए 54 महिलाओं का जत्था जिसका नेतृत्व श्रीमती धनेष्वरी देवी, श्रीमती तेतरी देवी और श्रीमती राम झरिया देवी कर रही थी।
ये महिलाएं अपनी भोजपुरी के जुझारू लोकगीत से उपस्थित जन समूह में जोष भर रहीं थी। दूसरी ओर युवाओं में देष पर मर मिटने का संदेष देने वाला गीत ‘सरफरोषी की तमन्ना….’’ देखना है कि जोर कितना बाजुए कातिल में है… गाया जा रहा था।
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द्वाबा की पवित्र धरती से फिरंगियों को भगाने और बतछोड़ थानेदार काजिम हुसेन को सबक सिखाने के लिए जुटी इस क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व श्री भूपनारायण सिंह, श्री सुदर्षन सिंह, श्री परषुराम सिंह, श्री बलदेव सिंह, श्री हरदेव सिंह, श्री राज किषोर सिंह, श्री बैजनाथ साह, तथा श्री राजकुमार मिश्र कर रहें थें।
इनके अतिरिक्त यहां उपस्थित जन नेताओं में सर्व श्री जंगबहादुर सिंह, श्री षिवदास राम, श्री सीताराम तेली, श्री हरदत्त, श्री मनोहर लाल, श्री षिव पूजन कुंवर, श्री देवनारायण, श्री चन्द्रिका राम, श्री हरवंष नारायण सिंह, श्री अयोध्या प्रसाद सिंह, श्री सच्चिदानन्द पाण्डेय, श्री मथुरा सोनार, श्री कुंज बिहारी, श्री खुबचन्द तेली, श्री रामचन्द्र ठाकुर, श्री राम ऋशि, श्री जमुना, श्री मिक्की, श्री रामबरन, श्री हरदेव राय, श्री राधाकृश्ण सिंह, श्री राम जतन राम आदि “ाामिल थें।
बाद में द्वाबा क्षेत्र के जननायक बाबा लक्ष्मण दास तथा श्री ब्रज बिहारी सिंह, श्री राम सकल सिंह और श्री जगदीष नारायण तिवारी भी पंहुच गये।
थाने पर बढ़ती भीड़ को देख थानेदार ने थाने के सभी कमरों में ताला बन्द करा दिया और अपने 14 सिपाहियों को लेकर खुद थाने की छत पर चढ़कर मोर्चा बन्दी कर लिया था।
उसी छत पर से नेताओं के साथ थानेदार की बात होने लगी। नेताओं ने उससे थाना खाली कर उसे जनता को सौंपने की बात कहा, तब थानेदार ने कहा कि आप लोग इस भीड़ को वापस भेंज दें मैं थाने पर खुद झण्डा फहरा देता हूं।
लेकिन भीड़ और नेता अब इस मक्कार थानेदार की बातों में नहीं आने वाले थे। जननेताओं ने कहा कि तुम अपने सिपाहियों के साथ नीचे उतर जाओ और हमारे साथ चलकर रेल पटरी उखाड़ने में सहयोग करो, तो हम मान लेंगे कि तुम भी सच्चे हिन्दुस्तानी हो,
लेकिन वह उपर फेकी गयी गांधी टोपी को पहनकर तिरंगे को चूमने लगा, और कहा कि हम लोग नीचे उतरेंगे तो जिन लोगों पर हमने दफा 110 चलाया है, वह लोग हमें मार डालेंगे। लेकिन भीड़ को इस चालबाज मक्कार थानेदार से वार्तालाप की नौटंकी अच्छी नहीं लग रही थी।
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कुछ लोग बगल से थाने में घुंसे और थानेदार का घोड़ा खोलकर अस्तबल ढ़हा दिया। तभी सामने से 4-5 सौ लोग फाटक, चाहरदीवारी फांदकर थाने में दाखिल हो गये। थानेदार ने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेष दिया। पहली गोली हीरा सिपाही ने दागी जो सुदर्षन सिंह की जांघ चीरती निकल गयी। अब भींड़ बेकाबू हो गयी।
लोग आड़ लेकर पत्थर चलाने लगें और पुलिस गोलियां चलाने लगी। थाने में क्रान्तिवीरों की लाषें बिछने लगीं, तो आकाष भी रो पड़ा, मूसलाधार बारिष होने लगी। लेकिन “ाहीदों की जंग जारी रही।
25 साल के क्रान्तिवीर कौषल कुमार थानेदार के आवास की छत से छलांग लगाकर थाने की छत पर जा पंहुचे, जैसे ही वह थाने पर हाथ में लिए तिरंगे को फहराने बढ़े, सिपाही जगदम्बा प्रसाद झण्डे को छीनने बढ़े, कौषल कुमार ने उन्हे पटक दिया।
तभी महमूद खां नाम के दूसरे सिपाही ने आजादी के इस दीवाने पर ताबड़तोड़ चार गोलियां दाग दिया। हाथ में तिरंगा लिए कौषल कुमार सिंह छत से नीचे जमीन पर आ गिरे।
दोपहर के डेढ़ बजे से सांय 7 बजे तक चले इस रोगंटे खड़े कर देने वाले संघर्श में 13 लोग थाना परिसर में ही “ाहीद हो गये थें। सौ से अधिक लोग पुलिस की गोलियों से घायल हुए थें।
लेकिन जब निहत्थे वीरों ने मोर्चा नहीं छोड़ा और सिपाहियों की कारतूसें खत्म हो गयीं, तो रात में पीछे की तरफ से जिधर मक्के की फसल लगी होने के कारण जनता की घेराबन्दी नहीं थी।
थानेदार अपने सिपाहियों और परिवार वाले सहित सादे कपड़े में भाग निकला। रातों रात पैदल भागते हुए सबेरे 9 बजे जब वह सहतवार थाने पर पंहुचे तो वहां जले हुए थाने पर फहराता तिरंगा देख इन लोगों के होष उड़ गये। यहां से ये लोग जान बचाकर घाघरा नदी की ओर भागे।
तब तक सहतवार के सेनानियों को इसकी खबर लग गयी। श्री श्रीपति कुंवर अपने पचास साथियों के साथ इनका पीछा करने लगे। खरौनी गांव के पास बैरिया के थानेदार और सिपाहियों ने अपनी 11 रायफलें और दो नाली बन्दूकें तथा अन्य भारी सामान फेंक दिया और आजमगढ़ जिले की सीमा में जा छिपे।
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इधर गोली लगने के बाद भी श्री कौषल कुमार सिंह मरें नहीं थें। तीन गोलियां उनकी गरदन में फंसी थी, जो बलिया अस्पताल में ही निकाली जा सकती थी।
अत: दूसरे दिन नाव से गम्भीर रूप से घायलों को बलिया ले जाया जा रहा था। उदर्इ छपरा घाट के पास क्रान्तिवीर कौषल को थोड़ा होष आया तो उनके मुंह से यही वाक्य निकला कि थाने का क्या हुआ? जब साथियों ने बताया कि थाने पर कब्जा हो गया।
तिरंगा फहरा रहा है, तब इस वीर ने अपनी अंतिम सांस छोड़ी। इस घटना में 6 और लोग अस्पताल में मरे अर्थात कुछ बीस “ाहीदों के बलिदान पर बैरिया थाना फतह हुआ।
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