Revolution of Ballia | History of Ballia | लूट के बाद जुर्माना भाग 16
लूट के बाद जुर्माना
अंग्रेज प्रषासक नेदरसोल और उसके सहयोगी कप्तान मार्क स्मिथ ने बलिया जिले की जनता पर इस उक्ति ‘जबरा मारे रोवे ना देव’ को चरितार्थ करते हुए। जुल्मों-सितम का पहाड़ ढ़ा दिया।
बन्दूक के कुन्दों से कूटने, संगीनों से कोंचने, कोड़ों से पीटने से लेकर अमानुशिक यातनाओं का कहर बरपा रहें, इन दोनों ब्रिटिषों ने जिले में कुल 150 मकानों को फौज से लूटवा कर फुकवा दिया। इनकी फौज 100 घरों को ध्वस्त भी कर चुकी थी। एक मोटे अनुमान के अनुसार उस वक्त 25 लाख रूपयों की सम्पत्ति इन फौजियों ने लूटा था। जो आज के अरबों रूपयों के बराबर की सम्पत्ति होगी।
इसके बाद जनक्रान्ति में सरकारी सम्पत्ति के नुकसान की भरपार्इ के लिए जिले पर 13 लाख रूपया का सामुहिक जुर्माना ठोका गया। जिसकी वसूली करने वाले कर्मचारियों ने जितने की सरकारी रसीद दिया। उसके दो गुना रूपया वसूला। इसके अलावे युद्ध का चन्दा, युद्धऋण, विजय ऋण के नाम पर जिले के सेठ साहूकारों, रर्इसों से जबरन लाखों रूपये वसूले गये।
इस जनक्रान्ति को फौरी तौर पर काबू करने के साथ यहां के कलक्टर श्री जे. निगम एवं पुलिस कप्तान श्री जियाउद्दीन अहमद को हटा दिया गया। उनके स्थान पर अंग्रेज कलक्टर मि. बैरेट और कप्तान मि. वुड आ गये।
अंग्रेज पुलिस कप्तान वुड और उसकी बीबी दोनों पैसों की वसूली में बड़े “ाातिर दिमाग के थें। ‘वुड’ रात में लोगों के घरों पर खुद छापे मारता था। सुबह बंगले पर बुलाकर उसकी बीबी पैसे वसूलती थी। इन दोनों ने भी लाखों रूपये ऐंठे।
अपने-अपने इलाकें में थानेदार, सिपाही से लेकर राजस्व कर्मचारी तक सभी अपनी औंकात और रूतबे के अनुसार लोगों को फर्जी मुकदमों में फंसाने की धौंस देकर खूब वसूली कर रहें थे।
थानेदार अपने द्वारा वसूली की गयी रकम का कुछ हिस्सा डाली (नजराने) के साथ कप्तान की बीबी को पंहुचा देते थे। जिससे कप्तान ने भी उनको लूटने की पूरी छूट दे रखी थी।
इसी दरमयान नेदरसोल और मार्कस्मिथ की लालची बीबीयां भी लूट का माल खाने बलिया आ धमकी थी।
कुल मिलाकर ये अंग्रेज अधिकारी मिलकर बलिया जिले को कंगाल बनाने में जुटे हुए थें। इस घटनाक्रम की सबसे मजेदार बात यह रही कि इन लोगों द्वारा ब्रितानी “ाासन के स्वामिभक्त, रर्इसों, राय बहादुरों का भी जमकर दोहन किया गया।
इन लोगों को रोज डाली (रिष्वत के रूपयों, सामानों सहित मिठार्इ आदि) के साथ साहबों के दरबार में हाजिरी लगानी होती थी। ताकि उनकी वफादारी से साहब बहादुर वाकिफ रहें। इन लोगों से भी लाखों रूपयों नगदी और लाखों के सामान उगाहें गये।
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क्रान्तिज्वाला जलती रही।
अंग्रेजी “ाासकों के इस क्रूरतापूर्ण दमन और लूट के बीच भी क्रान्ति की लपटें बुझी नहीं, वह अन्दर ही अन्दर और तेजी से धधकने लगी थी। भूमिगत नेता कार्यकर्ता जनता पर ढ़ाये जा रहे कहर से बड़े क्षुभित थे। गरम दल के कार्यकर्ता तो फौज से सीधी लड़ार्इ की तैयारी में जुट गये।
श्री रामनाथ प्रसाद, श्री परषुराम सिंह, श्री सियाराम सिंह, श्री सुदामा सिंह, श्री रामलक्षण पाण्डे, श्री राम दर्षन दूबे, श्री रामचन्द्र सिंह, श्री वीरेन्द्र सिंह, श्री हुल्लर राय, श्री “ांकराचार्य दूबे, श्री नन्द जी तिवारी, श्री केदार तिवारी, श्री नाथ लाल और श्री सूरज पाठक सहित पचास युवकों ने देहातों में रहने वाले सरकार के वफादार रर्इसों से उनकी बन्दूकें छीनने की योजना बनाया। क्योंकि फौज से लड़ने के लिए बन्दूक होना जरूरी था।
25 अगस्त को इन लोगों ने छाता, सीताकुण्ड, बादिलपुर, भरसौंता, हल्दी और बहुआरा में छापामार कर रर्इसों से 12 बन्दूकें जुटा भी लिए। लेकिन सीताकुण्ड में एक रात दो बन्दूकों के लिए छापेमारी करने में यह दल पकड़ गया। इस गांव में ऐसे दो लोगों के पास बन्दूकें थी, श्री बैजनन्दन तिवारी की बन्दूक तो इन लोगों ने छीन लिया।
लेकिन श्री रामनगीना तिवारी की बन्दूक छीनने में श्री परषुराम सिंह, श्री सुदामा सिंह, श्री हुल्लर राय और श्री रामनाथ प्रसाद पकड़ लिए गए। इतना ही नही ंतो मक्के के खेत में छिपे “ोश सभी इनके साथियों को गांव वालों ने घेर लिया। और इन लोगो पर पहरा बैठाकर पुलिस को खबर देने बलिया आदमी भी भेज दिया।
देर रात की इस घटना की खबर जब पड़ोस के गांव वालों को मिली तो वह गांव वालों को धिक्कारने लगें। सुबह होते ही सभी क्रान्तिकारी फरार हो गये। मौके पर पंहुचे बलिया “ाहर कोतवाल श्री नादिर अली हाथ मलते वापस लौटे।
इस सषस्त्र क्रान्ति के लिए श्री श्रीपति कुंवर बन्दूक जुटाने 23 अगस्त की रात में सहतवार पंहुच गए लेकिन फौज के आ जाने से उन्हे रेवती की ओर भागना पड़ा।
हथियारों के अभाव में इस सषस्त्र युद्ध को स्थगित करके थानों के कुंओं में जहर डालने और बम-बारूद बनाने की योजना बनने लगी। ये लोग किसी भी तरह से जनता के मनोबल को इस दमन की वजह से गिरने देना नहीं चाहते थें, और इसमें यह क्रान्तिकारी दल सफल भी रहा। बलिया में इतने दमन के बाद भी क्रान्ति की ज्वाला धधकती रही।
क्रान्तिकारी युवा फरारी मे रहते हुए ब्रितानी “ाासन को कभी किसी सरकारी भवन पर तिरंगा फहराकर, कभी किसी ब्रिटिष सरपरस्त को लूटकर दौर पर आये गवर्नर हैलेट को काला झण्डा दिखाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहें।
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मुकदमों का अम्बार
ब्रिटिष प्रषासन के अधिकारियों ने जिले नागरिकों पर झूठे-सच्चे मुकदमों का पहाड़ लाद दिया। 9 अगस्त से 25 अगस्त तक चली इस जनक्रान्ति में हजारों लोगों को मुलजिम बनाया गया। एक-एक मुकदमें में सौ-सौ, दो-दो सौ लोग मुलजिम थें। इसके अतिरिक्त हजारों की भीड़ अलग से अज्ञात अपराधी होती थी।
सबसे दिलचस्प बात यह थी कि कांग्रेस के जो नेता जेल से बाहर निकलने के बाद प्रषासन की मदद करके सभी अधिकारियों की जान बचाये, खजाने को लूटने से बचाया। निन्दा सुनकर भी सषस्त्र उग्र भीड़ को वापस घर भेजा। उन पर भी बलवा कराने का डकैती का केस लाद दिया।
आजाद भारत के प्रथम जिलाधीष श्री चित्तू पाण्डे पर 19 अगस्त को बलवा कराने का मुकदमा नगर मजिस्ट्रेट मुहम्मद ओबैस ने दर्ज कराया था। यह वही मजिस्ट्रेट थें, जिनकी खुद की जान केवल श्री पाण्डे जी के सख्त निर्देष के कारण बची थी।
सेषन कोर्ट में इनके बयान के बाद जब पाण्डे जी के वकील पं. षिवदान पाण्डे ने कलक्टर श्री जे. निगम की चिट्ठी अदालत में प्रस्तुत किया। जिसमें श्री ने लिखा था कि आप “ाान्ति व्यवस्था बनाये रखने में सरकार की बहुत अच्छी मदद कर रहें हे। यह पत्र 20 अगस्त 1842 का ही था। जज ने मु. ओबैस को फटकारते हुए। श्री चित्तू पाण्डे की रिहार्इ का आदेष दे दिया। लेकिन बेषर्मों ने तुरन्त उन्हे दफा 26 में जेल भेज दिया।
एक ही मुकदमें में गांव के रर्इस से लेकर गरीब, मजदूर, किसान, हलवाहा, चरवाहा, सभी को मुलजिम बनाया गया था।
इन मुकदमों की पैरवी करने जब सरकारी वकील की नौकरी छोड़कर श्री मुरली मनोहर बाबू, उतरे तो बहस में सरकारी पक्ष की धज्जियां उड़ने लगी। मुरली बाबू को ब्रितानी प्रषासन ने तंग परेषान करने की खूब कोषिष किया। लेकिन वह अडिग रहे।
कांग्रेस के युवा नेता, हार्इकोर्ट के वकील और स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी के पति श्री फिरोज गांधी अपने वकील मित्र श्री सतीष चन्द्र खरे के साथ 20 मार्च 1944 को गोरखपुर के किसान नेता की पैरवी में बलिया आये। यहां जब उन्होने बलियावासियों पर हुए अत्याचार को सुना तो रो पड़े।
झूठे मुकदमों से जूझ रही जिले की जनता के लिए उन्होने इलाहाबाद हार्इकोर्ट से वरिश्ठ वकीलों का एक पैनल ही तैनात करा दिया। जो बारी-बारी से आकर मुकदमों की पैरवी करने लगे। तब जाकर यहां के लोगों को राहत मिलने लगी। क्योंकि स्थानीय वकीलों द्वारा इन मुकदमों की पैरवी करने पर प्रषासन उन्हे परेषान करने लगता था
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