Revolution of Ballia Part 12 | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution

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Revolution of Ballia Part 12 | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 12

सिकन्दरपुर थाने पर अधिकार

आज दोपहर 12बजे दिन में श्री षिव पूजन सिंह (हरदिया) श्री हीरा राय (लिलकर), श्री बलदेव प्रसाद (बालूपुर), श्री लक्षन चौधरी (पुरूशोत्तम पट्टी), श्री छोटे लाल (पन्दह), तथा श्री स्वामीनाथ सिंह (महथापार) आदि नेताओं के नेतृत्व् में बीस हजार से भी अधिक का जनसमूह सिकन्दरपुर थाने पर आ धमका।

स्कूली बच्चों पर मिडिल स्कूल में घोड़ा दौड़ाने वाले थानेदार अषफाक हुसेन और यहां तैनात सिपाहियों को इस बात का इल्म था, कि यहॉ की जनता हमारे साथ क्या सलूक करने वाली है। इन लोगों ने रात में ही अपने परिवार वालों को सामान सहित चुप्पे चोरी कोथ के सैय्यद बरूस्सलाम के घर पंहुचा दिया था।

इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाते जैसे ही भीड़ थाने पर पंहुची। थानेदार ने थाने के अभिलेख सहित पुलिस की वर्दियां और बन्दूकें थाने की चाबी श्री षिवपूजन सिंह को सौंप दिया। थाने पर तिरंगा फहरा दिया गया। तथा थानेदार को थाने को छोड़कर चले जाने का आदेष दिया गया।

जिसे उसने तुरन्त मान लिया। लेकिन थाने पर कब्जा होने के साथ ही भीड़ बेकाबू हो गयी। विजय और गुस्से में पागल बने लोगों ने सिकन्दरपुर पुलिस चौकी को लूटकर उसमें आग लगा दिया। बीज गोदाम को लूट लिया। पषु बन्दी गृह (मवेषीखाना) के पषुओं को आजाद कर दिया। थाने की इमारत को तहस नहस कर दिया।

ऐसे ही नवानगर में पड़ोस के गांव से जूट़ी जनता ने प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों को साथ लेकर डाकघर फूंक दिया। हुसेनपुर में गांजे की दुकान का सारा गांजा फूंक दिया। कोथ में मवेषीखाना और पंचायत के कागजात फूक दिये गये।

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गड़वार थाने पर धावा

स्वराज सरकार द्वारा नियुक्त श्री महानन्द मिश्र और श्री विष्वनाथ चौबे गड़वार थाने पर अधिकार करने पंहुचे। लेकिन इनके पंहुचने से पहले ही गड़वार के थानेदार श्री वंषगोपाल सिंह ने एक दिन पूर्व ही थाना खाली कर दिया था। वह थाने के सारे सामान सहित बुढ़ऊ गांव में जा छिपे थे।

थाने पर कहने के लिए 4-5 सिपाही थें, जिनको बाहर करके श्री षिवपूजन सिंह और श्री जगमोहन सिंह ने जनता केा ललकार कर थाने की इमारत में आग लगवा दिया था।

वहां की स्थिति को देख समझकर श्री मिश्र और श्री चौबे जी थानेदार से थाने का सामान जमा कराने बुढऊ पंहुच गये। थानेदार श्री राजदेव सिंह के घर में छिप बैठे थे। बुलाने पर बाहर आये और भारी भीड़ देख उनकी सारी हिकमत फेल हो गयी।

उन्होने थाने की एक बन्दूक, अपना रिवाल्वर, कुछ भाले, कारतूस, हथकड़ी और कागजात इन क्रान्तिकारी नेताओं के हवाले कर दिया।

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डिप्टी कलक्टर फन्दे में

डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह जिन्हे कलक्टर ने 18 अगस्त को कमिष्नर वाराणसी के यहां फौजी सहायता के लिए संदेषवाहक बनाकर भेजा था। आज अपनी उसी पं0 काषीनाथ मिश्र द्वारा उपलब्ध करायी गयी कार से बलिया लौट रहें थे।

इसी राम लगन सिंह डिप्टी कलक्टर ने 16 अगस्त को गुदरी बाजार में गोली चलवायी थी, जिसमे ं9 लोग “ाहीद हुए थे।

गड़हा क्षेत्र के क्रान्तिकारियों केा यह बात पहले से मालूम थी, और वह जानते थें कि वह इसी रास्ते से वापस लौटेंगे। सबेरे आठ बजे जैसे ही लक्ष्मणपुर गांव के पास उनकी कार पंहुची लोग चिल्लाने लगें। इहे ह•- इहे ह• कुछ लोग साइकिल से पीछा करने लगें साथ में आगे वालों से घेरने को भी कह रहें थे।

श्री सिंह ने ड्राइवर को तेजी से भागने को कहा, लेकिन नरहीं गांव के क्रान्तिकारी तो उनके लिए 19 तारीख से ही फन्दा लगाये बैठे थें। श्री बृजनन्दन राय, श्री लक्ष्मी “ांकर त्रिवेदी और श्री जगत नारायण लाल ने अपने गांव के मगर्इ नदी पुल के पास सड़क खोंदकर, पुल पर इस कार को पकड़ने के लिए पहरा बैठा रखा था।

जब डिप्टी साहब अपनी कार से यंहा पंहुचे तो पहरे पर तैनात कार्यकर्ता हल्ला करने लगें। ड्राइवर ने खोदी हुर्इ सड़क पर पटरा लगा कर खार्इ पार करने की कोषिष किया। लेकिन कार खुदी हुर्इ खार्इ में जा गिरी।

इतने में जनता पंहुच गयी। जनता ने फन्दे में फंसी कार को घेर लिया। डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह जो इस समय भेश बदलकर खादी का कुर्ता पैजामा पहने हुए थें, कार पर भी तिरंगा लगा रखा था।

ताकि बलवार्इ जनता धोखा खा जाये। कार से निकलकर नरहीं गांव की ओर भागने लगे। किन्तु जनता ने पकड़ लिया। ड्राइवर और सिपाही भी बन्दी बना लिये गये। इन लोग से एक बन्दूक 14 कारतूस, तथा एक रिवाल्वर मय 36 कारतूस के छीन लिया गया।

बलिया के गुदरी बाजार में खून की होली खेलने वाले इस देषद्रोही डिप्टी कलक्टर को इस बहरूपिया वेष में देख जनता का खून खौल रहा था। लोग उस पर थप्पड़ चला रहें थें, वह हाथ जोड़कर जान की भीख मांग रहा था।

तभी किसी ने दो लाठी जमा दिया। वह भागकर एक बुढ़िया के घर में घुंस गया। बुढ़िया के यह कहने पर कि मैं इसे भागने नहीं दूंगी भीड़ ने जान छोड़ी।

बलिया से भेजे गये नेता श्री राम जी तिवारी और नरहीं के नेता श्री लक्ष्मी “ांकर त्रिवेदी ने प्रषासन को आन्दोलनकारियों के खिलाफ मंगनी में कार देने वाले राय बहादुर पं0 काषीनाथ मिश्र की भर्तसना करते हुए, कार को मौके पर ही फूंक दिया गया।

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रात में नरहीं के रर्इस चौधरी धर्मदेव राय, बुढ़िया के यहां से डिप्टी कलक्टर श्री राम लगन सिंह को अपने घर ले गये। जहां तीन दिनों तक वह छिपे रहें। वैसे भी इस आन्दोलन मे ंजनता के पक्ष द्वारा किसी भी सरकारी अधिकारी कर्मचारी को जान से नहीं मारा गया था।

उनके परिवार वालों से तो किसी ने बदसलूकी भी नहीं किया। सभी जानते थें कि यह भी हमारी तरह भारतीय है, जो कुछ भी ये लोग कर रहें हैं, ब्रिटिष “ाासकों की गुलामी की नौकरी के कारण कर रहें है।

उधर ब्रिटिष “ाासन को जैसे ही बलिया जिले के कलक्टर श्री जे0 निगम द्वारा विषेश वाहक श्री रामलगन सिंह के हाथों कमिष्नर वाराणसी को भेजी रिपोर्ट से बलिया जिले में बगावत की खबर मिली। प्रांन्त के अंग्रेज गवर्नर मि0 हैलेट तिलमिला उठे।

उन्होने तत्काल नेदरसोल नाम के एक क्रूर अधिकारी को विषेशाधिकार देते हुए सर्वोच्च प्रषासक नियुक्त कर बलिया रवाना कर दिया।

नेदरसोल को गवर्नर ने बलिया पर पुन: अधिकार करने के लिए अपनी सारी “ाक्तियों का उपयोग करने हेतु प्रतिनिहित अधिकार सौंप दिया था।

सेना की एक टुकड़ी के साथ उखड़ी हुर्इ रेल लाइनों को ठीक करते हुए नेदरसोल ने बलिया कूच किया। उसकी सहायता करने के लिए जलमार्ग से मार्क स्मिथ के नेतृत्व में दूसरी फौजी टुकड़ी भी बलिया की ओर चल पड़ी।

आजमगढ़ की ओर से भी कैप्टन मूर भी अंग्रेजी फौज के साथ बलिया की ओर बढ़ने लगे।

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आजादी पर ग्रहण22 अगस्त 1942

फौज की टुकड़ी के साथ रेलवे के सैकड़ों कुलियों, इंजीनियरों की मदद से जनता द्वारा उखाड़ी गयी। रेल पटरियों की मरम्मत करते हुए एक छोटी सी फौजी रेलगाड़ी पर 22/23 की देर रात 2 बजे तक नेदरसोल बलिया रेलवे स्टेषन पर पंहुचा।

उस वक्त पूरा स्टेषन सुनसान, अधजला, उजड़ा, वीराना था। कहीं कोर्इ नहीं था। उसने परिसर से बाहर निकलकर स्थिति का जायजा लेना “ाुरू किया। तभी उसे ओक्डेनगंज चौराहे पर पहरा दे रहा स्वायत सरकार का एक स्वयंसेवक दिखा।

उसने खुद दौड़कर स्वयंसेवक को धर दबोचा। स्टेषन पर उसे ले आकर उसने धमकाते हुए कहा कि कलक्टर का बंगला देखे हो ? स्वयंसेवक ने स्वीकृति में सिर हिलाया। तब उसने अपना रिवाल्वर उसके सीने पर तानकर कहा कि मुझे चलकर कलक्टर का बंगला दिखाओ, नही ंतो गोली मार दूंगा।

ज्यादातर सैनिकों को ट्रेन की सुरक्षा में स्टेषन पर ही छोड़कर 10-12 फौजियों को लेकर स्वयंसेवक पहरेदार को आगे’चलाते हुए, पैदल ही नेरसोल सिविल लाइन स्थित कलक्टर के बंगले पर पंहुचा। गवर्नर के आदेष का मौखिक ही बयान करके उसने तत्काल जिला प्रषासन को हाथ में ले लिया।

कलक्टर श्री जे0 निगम और पुलिस कप्तान श्री जियाउद्दीन अहमद दोनों भारतीय मूल के अधिकारी थें, और उन्हे अंग्रेज अधिकारी के रौब-रूतबे का ठीक से ज्ञान था।

यहां इस बात से कोर्इ मतलब नहीं था, कि कौन बड़ा है? कौन आर्इसीएस है? सामने वाला ब्रिटिष है तुम इण्डियन हो तो आदेष का पालन करो।

बगैर कोर्इ आदेष का कागजात देखें और गवर्नर, कमिष्नर से बात किये, मात्र 10 मिनट में अपने मौखिक आदेष पर जिला प्रषासन की सारी “ाक्तियों को हस्तगत करके डीएम, एसपी की गाड़ियों और “ाहर कोतवाल को साथ लेकर 2:45 बजे रात में ही नेदरसोल “ाहर में आ धमका।

कलक्टर साहब के आवास पर हो रही प्रषासनिक बातचीत के दौरान ही पहरेदार स्वयंसेवक ने परिसर में छाये धुप्प अंधेरे का फायदा उठाया और चहारदीवारी फांदकर कटहर नाला पार कटरिया के जंगल में जा छिपा।

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