Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 13
स्वराज की प्रथम स्वायत सरकार का गठन
20 अगस्त 1942
ब्रितानी साम्राज्य के प्रषासन को बलिया में परास्त कर देने के बाद “ाासन-सूत्र के संचालन हेतु 20 अगस्त को तीसरे प्रहर में बाबू षिव प्रसाद गुप्त की कोठी पर स्वराज आन्दोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं की बैठक हुर्इ।
सभी के समक्ष यह ज्वलन्त सत्य भी प्रत्यक्ष दिख रहा था कि 12 दिनों की सफल बगावत के बाद केवल बलिया जनपद ही आजाद हुआ है, इसके आसपास या सीधे “ाब्दों में कहा जाए तो चारों तरफ ब्रिटिष “ाासन यथावत कायम था। ऐसे में “ाासन सत्ता का भार सम्भलना भी आग से खेलने और दुधारी तलवार पर चलने के बराबर था।
फिर भी इतने बलिदानों के बाद मिली आजादी के बाद कर्तव्य विमुख होना कायरता होगी। इन सारे पहलुओं पर विचार करने के बाद सर्व सम्मति से बलिया में प्रजातांत्रिक स्वराज सरकार की स्थापना करने तथा जिले की सभी सड़कों, रेल मार्ग को भंग, अवरूद्ध कर इसे ‘आजाद दीप’ बनाने का निर्णय हुआ।
आजाद भारत की प्रत्थम ‘प्रजातांत्रिक स्वराज सरकार’ के प्रथम जिलाधिकारी के रूप में श्री चित्तू पाण्डेय का चयन किया गया। साथ ही यह भी तय किया गया कि जिले के हर गांव में पंचायतों का गठन किया जायेगा।
जो ग्राम के विकास सहित न्याय पालिका का दायित्व भी निभाएगी। गांव स्तर पर सुरक्षा सुनिष्चित करने के लिए स्वयंसेवकों की भर्ती करने तथा इनके द्वारा गांवों में रात को पहरा देने की व्यवस्था बनायी गयी।
स्वराज सरकार के विधिवत गठन के बाद यह भी निष्चित किया गया कि सारे पारित प्रस्तावों की पुश्टि जनता से करायी जाएगी।
सांयकाल टाउन हाल (अब बापू भवन, क्रान्ति मैदान) के प्रांगण में विषाल जनसभा का आयोजन किया गया। उपस्थित उत्साह उल्हास से लबरेज विपुल जनसमूह के बीच कांग्रेस नेताओं ने स्वराज सरकार के गठन और पं. चित्तू पाण्डे को जिलाधिकारी बनाये जाने की घोशणा किया। जिसका तालियों की गड़गड़ाहट और हर्श ध्वनि से जोरदार स्वागत हुआ।
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“ाहर की जनता ने तत्काल 2500 रूपये का चन्दा स्वराज सरकार को चलाने के लिए दिया।
लेकिन गरम दल अभी भी गरम था, उन्होने कहा कि जिले के कुल 10 थानों में से 7 पर ही जनता का अधिकार है, 3 थानों पर अभी भी अंग्रेजों का झण्डा फहरा रहा है, यद्यपि कि प्रषासनिक अमला वहां कुछ भी नहीं कर रहा है।
फिर भी उनको भी हस्तगत करना जरूरी है। इस जिले की सीमा में मौजूद हर ब्रिटिष चिन्ह पहचान को भी मिटाया जाना चाहिए। कुछ लोगों ने श्री चित्तू पाण्डे के बारे में भी टिप्पणी किया।
लेकिन तत्काल उसी गरम दल के वरिश्ठ सदस्यों ने स्थिति को सम्भालते हुए कहा कि यह सच है कि हमारे नेता श्री चित्तू पाण्डेय “ाुरू से ही इस आन्दोलन में तोडफोड़ और विध्वंसक कार्यवाही के विरोधी रहें है। वह गांधीवादी नेता है इसलिए अपने सिद्धान्त पर सही है।
कल की जनसभा में श्री पाण्डे जी इस आन्दोलन और इसकी सफलता का श्रेय जिसकी हकदार वास्तव में यहां की जनता है, उसे संहर्श समर्पित कर चुके है, इस आधार पर हम सभी बगैर किसी टीका टिप्पणी के श्री चित्तू पाण्डे जी को अपनी स्वराज सरकार का नेता स्वीकार करें।
साथ ही हमारी यह अपील नेतृत्व वर्ग भी स्वीकार करें कि ब्रिटिष “ाासन को इस जिले में पूरी तरह मिटाने में हमारा सहयोग करें। इसके बाद मैदान एक बार फिर तालियों से गूंज उठा।
“ोश बचे तीनों थानों पर अधिकार करने के लिए पं0 महानन्द मिश्र, श्री विष्वनाथ चौबे, श्री पारसनाथ मिश्र तथा श्री राम जी तिवारी के नामों की मंच से घोशणा हुर्इ। ये सभी युवा समाजवादी विचारधारा के थें।
बलिया “ाहर में आज ही देर रात तक मुहल्ला पंचायतों का गठन कर लिया गया। मुहल्लों की सुरक्षा की जिम्मेदारी युवा स्वयंसेवकों ने उठा लिया।
इसी प्रकार जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी युद्ध स्तर पर ग्राम पंचायतों का गठन एवं सुरक्षा स्वयंसेवकों की भर्ती का काम “ाुरू हो गया।
जिला कांग्रेस कमेटी का कार्यालय जिले के प्रषासन को चलाने का केन्द्र बनाया गया।
आज उभांव थाने से बलिया आ रहे 5 सिपाहियों को सिकन्दरपुर मार्ग पर भरखरा गांव के पास सुखपुरा के श्री राम किषुन सिंह और श्री नागेष्वर सिंह ने रोक कर क्षेत्रीय जनता के साथ मिलकर उनकी वर्दी उतरवाया और बन्दूकें छीनकर नंगे बलिया भेज दिया।
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आज के दिन देापहर से ही जिले की जनता स्वस्फूर्त सक्रिय थी। बलिया गाजीपुर सड़क मार्ग और बलिया मऊ मार्ग सुरक्षा की दृश्टि से संवेदनषील थे।
इन दोनों सड़कों को जनता ने जगह जगह खोद डाला, सारे पुल तोड़ दिए। पेड़ों को काटकर सड़कें बन्द कर दिया। कुतुबगंज के स्टीमर घाट को फूंक दिया।
आज के दिन पूरे जिले में एक अदभूत वातावरण था। आजादी का आनन्द लोगों के अन्दर से फूट रहा था। खेत खलिहान, बाग बगीचे, मोट रहट की पदउरी से लेकर गांवों की चौपाल तक हर कोर्इ चहक रहा था। पुलिस और पूरा प्रषासनिक अमला भींगी बिल्ली बना, छिपा हुआ था ।
ब्रितानी “ाासन में रौब गांठने वाले सभी लोग अपना मुंह छिपाकर कहीं आ जा रहें थें। अंग्रेजी “ाासन के सभी सरकारी दफ्तर बन्द और उदास हो गये थें।
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चूक का दंश 21 अगस्त 1942
ब्रितानी साम्राज्य के प्रषासन को केवल जनबल का दर्षन कराकर पदच्यूत करने वाले बलियावासियों ने खुद तो अपने सीने पर पुलिस की गोलिया खार्इ। बलिया “ाहर, रसड़ा और बैरिया में ब्रिटिष प्रषासन द्वारा चलायी गयी गोली से 32 क्रान्तिवीर “ाहीद हुए।
सिकन्दरपुर में थानेदार ने छोटे-छोटे बच्चों पर घोड़ा दौड़ाया। सैकड़ों स्वतंत्रता सैनिकों को घोर आमानुशिक यातनाएं दी गयी। विद्यार्थियों युवाओं को रात में गिरफ्तार करके उन्हे पेड़ों पर लटकाकर कोड़ों से पीटा गया।
उनके गुप्तांगों को पत्थरों पर रकड़कर उन्हे नपुंसक बनाने की कोषिष की गयी।
लेकिन इन क्रान्तिवीरों ने प्रषासन के किसी अधिकारी, कर्मचारी अथवा उनके परिवारजनों को पकड़ने के बाद भी उनकी जान नहीं लिया।
मु0 औबेस जैसे क्रूर अधिकारी को कान पकड़कर उठक-बैठक कराकर छोड़ दिया। 19 अगस्त को अगर जनता चाही होती तो जिले में ब्रिटिष प्रषासन का कोर्इ अधिकारी कर्मचारी जिन्दा नहीं बच पाता। यद्यपि की गरमदल के युवा कार्यकर्ता केवल नेताओं की रिहार्इ और कलक्टर-कप्तान के आत्मसमर्पण से संतुश्ट नहीं थे।
वह पूरी तरह से जिला मुख्यालय के सभी सरकारी कार्यालयों पर अधिकार करने और आन्दोलनकारियों पर अत्याचार करने वाले सरकारी अमले को जिले की सीमा से बाहर खदेड़ना चाहते थे।
लेकिन रिहा हुए नेता ब्रितानी “ाासन के खैरख्वाहों और प्रषासन के अधिकारियों के बहकावे की साजिष का षिकार हो चुके थे।
आज सुबह जिला प्रषासन ने अपनी जान की कीमत पर हुआ समझौता को तोड़ दिया। पुलिस का एक दल “ाहर में घुंस आया और उन्होने मालगोदाम और बालेष्वर मन्दिर के पास अपनी हनक जमाने की गरज से अकारण गोलियां चला दिया। जिसमे कारों में वृद्ध रिटायर्ड पेंषकार श्री मोहितलाल और एक अन्य व्यक्ति मारे गये।
इस खबर के फैलते ही लोग नरम दल के नेताओं को कोसने लगें। जिन्होने युवा वर्ग के द्वारा निर्धारित कलक्टर श्री जे0 निगम और पुलिस कप्तान श्री जियाउद्दीन अहमद को बन्दी बना उनके कार्यालय पर कब्जा करने की योजना को पूरा नहीं होने दिया।
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