Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 1

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Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 1

लेखक की अपनी बात

विगत वर्ष ब्रिटेन के दो शोध छात्र यह जानने बलिया आये थे कि आखिर वह कौन से कारण थे? जिसके चलते दुनिया के दो-तिहार्इ भू-भाग पर शासन कर रहे, दक्ष प्रशासकों-सबल सैन्य शक्ति से सम्पन्न ब्रितानी शासन के विरूद्ध होने वाली हर बगावत में बलिया युवा और आमजन उग्रता से “ारीक हो जाते थे।

इन कारकों के तथ्य खंगालने में इन लोगों ने ब्रिटिष “ाासन काल से जुड़े हर पहलू यहां की सामाजिक व्यवस्था, लोगों के रहन-सहन, प्रषासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ बर्ताव एवं विकास के कार्यो सहित सभी बिन्दुओं पर इतनी गहरार्इ से पड़ताल किया कि कभी-कभी में खीझ जाता था।

महीने भर की मषक्कत के बाद यहां पर उपलब्ध साहित्यों और गुलामी के दिनों की दास्तां बताने वाले बुजुर्गो के संस्मरण, ढेर सारे चित्र खींच वह तो वापस चले गये। लेकिन मेरा मन इस स्वर्णिम इतिहास को लिखने के लिए बेचैन रहने लगा। जो आज आपके हाथों में है।

स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के योगदान के इस अद्वितीय अध्याय को लिखने में मैने इस जनक्रांति के अपराजेय योद्धा, डीएवी स्कूल बिल्थरारोड के प्रधानाध्यापक स्व0 देवनाथ उपाध्याय जी की पुस्तक ‘बलिया में क्रांति और दमन’, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, बलिया के यषस्वी साहित्यकार,

भृगुक्षेत्र दैनिक समाचार पत्र के संस्थापक, सम्पादक स्व0 बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त की पुस्तक ‘बलिया में सन् 42 की जनक्रांति’ और स्व0 राम सिहांसन सहाय ‘मधुर’ श्री रमाषंकर लाल, श्री नरेन्द्र “ाास्त्री आदि साहित्याकारों की कृतियों-आलेखो विभिन्न “ाासकीय गजेटियरों, तथा सूचना विभाग उ0प्र0 द्वारा प्रकाषित ‘स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक’ भाग 2 सम्पादक श्री एस0 पी0 भट्टाचार्य पुस्तक से तथ्य संकलन किया है।

इसके अतिरिक्त क्रांतिकारी सेनानी स्व0 ठाकुर जगन्नाथ सिंह, स्व0 बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त, स्व0 बाबू काषी प्रसाद ‘उन्मेश’ गोवा सत्याग्रह के सेनानी, साहित्यकार श्री राम विचार पाण्डेय जी तथा अगस्त क्रांति के सेनापति स्व0 पं0 महानन्द मिश्र जी,

एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राधिका मिश्रा के सानिध्य में रह उनके संस्मरण सुना उसका भी समावेष है। मैं इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।

इस पुस्तक को लिखने में मुझे अपने पिता स्व0 रामाषीश सिंह द्वारा सुनाये बताये गए संस्मरणों से भी काफी सहयोग मिला ये ऐसे स्वातंत्रय सेनानी रहे जिन्हे इस जनक्रांति में भाग लेने के कारण अपना धर्म बदलकर सिक्ख बनना पड़ा।

इन सभी पढ़-सुने-गुने तथ्यों के आधार पर आजादी की इस गाथा को मैं इस भाव संवेदना के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया हूँ कि देष की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण-परिजनों की खुषी-खुषी होम करने वाले हुतात्माओं के उत्सर्ग को भावी पीढ़ी जानकर उनसे प्रेरणा प्राप्त कर सके।

इन क्रांतिवीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का असीम साहस किया। उसके पीछे एक भाव यह भी था कि हमारी पीढ़ी गुलामी की नहीं आजादी की जिन्दगी जी सके। इस स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक स्व0 पं0 तारकेष्वर पाण्डेय ने तो सौगन्ध खायी थी की ब्रितानी गुलामी में गुलाम बच्चे नहीं पैदा करूगां।

बलिया में हुर्इ 1942 की जनक्रांति ने आजादी की जो वास्तविक तस्वीर दुनिया को दिखायी। वह आज भी नजीर है-पूरे देश से पांच वर्ष पूर्व अपने पौरूष से ब्रितानी साम्राज्य की गुलामी को उतार फेंकने के बाद जिले में जो स्वायत शासन की व्यवस्था हुर्इ, उस व्यवस्था पूरी तरह नियन्त्रण में रही, कहीं कोई चोरी, डकैती छिनैती, लूट, बलवा को को कौन कहे सामान्य मारपीट की घटना नहीं हुई।

उल्टे ब्रिटिश सरकार के शासन में हुई लाखों की डकैती का सारा सामान डकैतों से वापस कराया गया। लम्बे समय से चल रहे मामले मुकदमें चन्द घंटो में पचायत से खत्म करा दिये गए। जो आज भी गवाह है। बाजारों में सभी सामान उचित मूल्य पर सही नाप तौल में उपलब्ध थे।

कहीं कोई किसी से बेगार नहीं ले सकता थौ जोर-जबरदस्ती, दबंगई करने वालों की बोलती बन्द हो गयी थी।चोर, डकैत, बदमाशो ने या तो जिला छोड़ दिया था नहीं तो अपना जरायम पेशा छोड़ दिया था। अर्थात आजादी का वास्तविक स्वरूप् उस समय बलिया की बागी घरा पर प्रत्यक्ष रूप से दिखायी दे रहा था।

इस पुस्तक के सम्पादक डॉ0 लवकुष द्विवेदी जी को धन्यवाद देने के लिए मेरे पास “ाब्द नहीं हैं, संस्कृति विभाग उ0प्र0 की ओर से मेरी इस कृति को छपवाने का जो उन्होंने उपकार इस जिले पर किया है,

उसके लिए मैं अपने जनपदवासियों सहित ऋणी हूँ। क्योंकि वर्तमान में जिले के इस गौरवपूर्ण अतीत पर कोर्इ भी पुस्तक उपलब्ध नहीं मैंने स्वयं ‘बलिया में क्रांति और दमन’ और ‘बलिया में सन् 42 की जनक्रांति’ पुस्तकों को काफी कठिनार्इ से प्राप्त कर पढ़ा है। अब यह पुस्तके अति दुर्लभ हो गयी है।

अन्त में संस्कृति विभाग उ0प्र0 की उनके इस स्तुत्य श्लाघनीय कार्य हेतु आभार व्यक्त करता हूँ।

सन् बयालीस का तूफान उठाने वालों ! 

ईट से ईट ब्रितानियों की बजाने वालों !

मौत की गोद में भी झूम के गाने वालों !

हमें आजादी का असल रूप दिखाने वालों !

वतन के वास्ते खुद को मिटाने वालों !

तुमकों भूलें हैं न भूलेगें फिदायाने वतन

 तुम पे हम फूल चढ़ाते हैं शहीदाने वतन !

जयहिन्द

शिवकुमार सिंह कौशिकेय

Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 1

क्रांति भूमि की झलक

पूरा देष अगस्त 1947 र्इ0 को आजाद हुआ लेकिन उ0प्र0 बलिया जिले के जनता ने अपनी बल पर 5 वर्श पूर्व अगस्त 1942 में ही आजादी एक झलक प्राप्त कर दुनिया को आजादी अर्थ और मार्ग बता दिया।

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बलिया जिले के योगदान पर दृश्टिपात करें तो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिनगारी इसी माटी के लाल अमर “ाहीद मंगल पाण्डे की बन्दूक से 9 फरवरी 1857 को बैरकपुर सैनिक छावनी के परेड ग्राउण्ड में निकल कर ब्रितानी सेना के मेजर हृयूसन और बॉफ के सीनों को छलनी कर बारूद बन गयी थी।

बलिया जिले के नगवां गावं में 30 जनवरी 1831 र्इ0 को पं0 सुदिश्ट पाण्डे के पुत्र रूप में पैदा हुए। 19 वीं पलटन के 34 नं0 देषी पैदल सेना के 1446 नं0 सिपाही मंगल पाण्डे द्वारा सुलगाये सैनिक विद्रोह की घटना का आंकलन मात्र इतने से किया जा सकता है कि 9 सितम्बर 1857 को ब्रिटिष संसद में ब्रिटेन के वरिश्ठ सांसदों ने कहा कि ‘ब्रिटिष साम्राज्य पर जो सबसे बड़ी विपत्ति आ सकती थीं वह हमारे सिर पर घहरा पड़ी है’ भारत में सेना की बगावत बहुत गम्भीर घटना है।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानायक वीरवर बाबू कुँवर सिंह जब आगरा -अवध प्रान्त में ब्रिटिष सामाज्य को रौंदते हुए 18 अपैल 1858 र्इ0 को बलिया जिले की सीमा में प्रवेष किए तब नगरा, सिकन्दरपुर, काजीपुर, मनियर, बांसडीह और सहतवार में उनका विजेता की तरह स्वागत करने से लेकर उनके फौज को खाना-पानी और सुरक्षित ठिकाने का इन्तजाम स्थानीय गांववासियों ने चारो तरफ से घेरा डाले बैठी,

ब्रिटिष फौज की आंखों में धूल झोंककर किया। इतना ही नहीं 22 अप्रैल को षिवपुर घाट पर डेरा डाल कर बैठी ब्रितानी फौज को चकमा देकर मल्लाहों ने बाबू कुॅवर सिंह को सेना सहित पार भी उतार दिया।

गाजीपुर के जिला मजिस्ट्रेट राबर्ट डेविस और ब्रिगेडियर डगलस जो वीरवर का पीछा अपनी पूरी फौज के साथ कर रहे थे। 23 अप्रैल 1858 को वाराणसी डिवीजन के कमिष्नर श्री र्इ0वी0 गबिन्स को जो रिपोर्ट भेजा, उसमें लिखा है कि यहां के गांववालों ने कुॅवर सिंह का उत्साह और जोषों खरोष से स्वागत किया।

इन लोगों ने खुद घर-घर से रसद जुटाकर उनकी सेना की सारी जरूरतों को पूरा किया। यहॉ के सभी लोग एक मत है, और इन लोगों ने हम लोगों के जासूसों को कैद कर लिया था। जिससे हमलोगों को सूचना मिलने में देर हो गयी और वह भाग निकले।

Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 1

जंगे आजादी की हर तवारीख को इस जिले के क्रांतिकारियों ने अपने खून-पसीने से सींचा है 1920 में ‘प्रिंस आफ वेल्स’ के ‘बहिश्कार आन्दोलन’ में गर्वमेन्ट स्कूल के छात्र ठाकुर जगन्नाथ सिंह ने प्रिंस का तगमा अपने जूते के फीते में बांधकर किया।स्कूल से निश्कासित होने के बाद इनके द्वारा गठित छात्रों के संगठन विद्याथ्र्ाी परिशद् ने महाबीरी झण्डा जुलूस निकाल कर बलिया के कलक्टर और एसपी को नाकों चना चबवा दिया।

1921-22 के असहयोग आन्दोलन, 1924 के झण्डा सत्याग्रह, 1930-32 में चले सविनय अवज्ञा आन्दोलन और नमक सत्याग्रह और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह से लेकर नेताजी सुभाशचन्द्र बोस के ‘आजाद हिन्द फौज’ एवं चन्द्रषेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव आदि क्रांतिकारियों द्वारा चलायी जा रही जंग में हर जगह पर इस जिले के युवाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया।

1942 की जनक्रांति उस धरा पर हुर्इ जहां, गंगा-सरयू की जलधाराओं के बीच पैदा हुए बच्चों को जीवट की जिन्दगी जीने कला ये नदियां सिखाती है, इस उर्वर धरा पर रहने वाले लोग प्राय: प्रतिवर्श बाढ़ की विभिशिका, आगजनी के कहर को झेलकर इतने साहसी बन जाते है कि खतरा उठाना इनके लिए एक खेल बन जाता है,

भौगोलिक दुरूहता को वरदान में बदलना यहां के निवासी खूब जानते है। इसी जीवटता के कारण असम का जंगल हो या उत्तराखंड का हिमालय पर्वत, पं0 बंगाल, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ की कोयले खदानें हो या दिल्ली, मुंबर्इ, चेन्नर्इ और कोलकाता महानगर हो बलिया के लोग सब जगह आपको अपनी जीवन्त जीवटता के साथ मिल जाएगें।

इतना ही नहीं तो देष के बाहर मारीषस, फिजी, म्यांमार, सिंगापुर को आबाद करने वाले गिरमिटिया मजदूरों में भी बलिया की उल्लेखनीय आबादी “ाामिल है।

इसी क्रांति भूमि पर अगस्त 1942 में वह जनक्रांति हुर्इ। जिसने एषिया और अफ्रीका महाद्वीप के ब्रिटिषों की गुलाम देषों की जनता के लिए आजादी के लिए उठ खड़े होने का उत्साह भर आषा की नव किरण के दर्षन करा दिया।

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