Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 4

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Bagi Ballia Revolution | History of Ballia | Revolution of Ballia भाग 4

जनक्रांति का बिगुल बजा


10 अगस्त 1942

सुबह के चार भी नही ंबजे थे कि अंधेरे में लालटेन लिए पैदल, साइकिल से बीसों कार्यकर्त्ता एलान करने लगे। कुछ तेज तर्रार युवक अपने भोंपू से चौराहे पर भाशण भी दिए। दो घण्टें के अन्दर पूरे बलिया “ाहर को मालूम हो गया कि आज गांधी जी की गिरफ्तारी के विरोध में “ाहर बन्द रहेगा, जलूस निकलेगा।

प्रात: ठीक आठ बजे ओक्डेनगंज चौराहे पर (जहां वर्तमान में श्री उमांषकर जी की प्रतिमा लगी है) सभी कार्यकर्त्ता पहुंच गए। बलिया “ाहर के डिक्टेटर श्री उमाषंकर जी ने साथियों के साथ ‘महात्मा गांधी की जय, भारतमाता की जय, इन्कलाब जिन्दाबाद ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ के नारे लगाने लगें। कुछ ही देर में “ाहर के सैकड़ो लोग इस क्रांति के “ांखनाद में जुट गए।

जनता की बढ़ती जा रही भीड़ को देखकर उत्साहित हए श्री उमाषंकर ने अपने भोंपू से संक्षिप्त ओजस्वी भाशण दिया। साथ ही जलूस निकाल कर पूरे “ाहर में हड़ताल कराने के कार्यक्रम का एलान किया।

इस जलूस के संचालन मे श्री उमाषंकर के प्रमुख साथी श्री श्रीकान्त पाण्डेय और श्री सूरज प्रसाद तथा श्री अवध किषोर प्रसाद सहयोग दे रहे थे। जलूस में अब भीड़ भी अच्छी हो गयी थी। तभी स्टेषन पर एक ट्रेन आ गर्इ, उन दिनों ट्रेन से काफी युवक बलिया में पढ़ने आते थे।

जलूस जब रेलवे स्टेषन पर नारे लगाता पहुंचा तो ट्रेन से उतरे सभी विद्याथ्र्ाी स्वयं ही जुलूस मे “ाामिल हो गए। यहां से यह जलूस चौक की ओर चल दिया।

चौक पहुुंचने पर जुलुस में काफी अधिक लोग “ाामिल हो गए। अब इन लोगों ने स्कूलों को बन्द कराने लिए लोहापट्टी, “ानिचरी मंदिर का रास्ता पकड़ा। बालेष्वर घाट के आगे टाउन स्कूल (अब गुलाब देवी इण्टर कॉलेज एवं डिग्री कॉलेज) पहुचे टाउन स्कूल के विद्याथ्र्ाी जुलुस में “ाामिल हो गए यहां से यह जूलूस मेस्टन हार्इस्कूल (अब लक्ष्मी राज देवी इण्टर कालेज) की ओर बढ़ा, स्कूल बन्द करके तो विद्याथ्र्ाी आए ही स्कूल के छात्रावास के बच्चे भी जलूस में “ाामिल हो गए जिनका नेतृत्व श्री योगेन्द्र नाथ मिश्र श्री गौरीषंकर राय (जो बाद में सांसद बने) तथा श्री बासुदेव राय कर रहे थे।

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यहां से जन सैलाब बनकर यह जूलूस जब मालगोदाम पहुंचा तो कम्युनिस्ट नेता श्री विष्वनाथ प्रसाद ‘‘मर्दाना’’ मिल गए, उन्होंने अपने अंदाज में इस जन सैलाब को ललकारा नतीजन मालगोदाम के मोटिहा मजदूर भी जूलूस में “ाामिल हो गए। गर्वमेन्ट स्कूल होकर यह जूलूस कचहरी में जाकर समाप्त हुआ।

बलिया “ाहर के व्यापारी दुकानदारों ने स्वेच्छया अपना कारोबार बन्द रखा और काफी संख्या में जलूस में “ाामिल भी रहे।

प्रदीप्त हुई क्रांति ज्वाला


11 अगस्त 1942 10 अगस्त को बलिया की सड़कों पर उमड़े जनसैलाब ने जो संदेष दिया, उससे स्वतंत्रता आन्दोलन के नरम दल और गरमदल दोनों के नेता कार्यकर्त्ता काफी उत्साहित थे, उस विषाल जूलूस में “ाामिल लोग बड़ी बहादुरी के साथ दूसरों को यह समझा रहे थे कि अब तो बलिया के कलक्टर, एसपी ने लिखकर भेज दिया है कि बलिया को आजाद करना पड़ेगा, नही तो बहुत खून-खराबा, बलवा हो जाएगा।

कुछ लोग सुनकर हंसते थे, लेकिन बहुतेरों के मन-दिमाग में बैठा प्रषासनिक अमले का डर निकलने लगा था। क्योंकि जब जूलूस निकला तो लोगों को लग रहा था कि अंग्रेज अधिकारी जूलूस पर लाठीचार्ज करेगें, गोली चलवाएगें, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टे प्रषासनिक अमला भीड़ को देखकर दुबक गया।

आज सुबह से ही कजरारे बादल छाये थे, रूक-रूककर फुहारें भी पड़ रही थी गंगा और घाघरा दोनों नदियों मे आयी बाढ़ से लकड़ा, मगही, टोंस, सुरहाताल, दहताल सभी उफनाएं हुए थे, ऐसा लग रहा था मानों यह नदी-नाले भी बलिया से अंग्रेजी साम्राज्य को मिटाने पर आमादा हो।

आस-पास के गांवों और “ाहर के विभिन्न मुहल्लों से छोटे-छोटे जत्थे में निकला जूलूस दोपहर में जब चौक में पहुंचा तो इसका स्वरूप उफनाएं जन सागर का हो चुका था।

उस समय यह चौक जिसे आज हम “ाहीद पार्क के रूप में जानते है, इसमें कोर्इ चहारदीवारी नही थी, जहां पूज्य महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है, उसके नीचे कुआं है। यह छ: दिषाओं में निकली सड़कों की पटरी का खुला मैदान था। जिससे पेड़ों की छांव थी।

यहां पहुंच कर यह जूलूस जनसभा में परिवर्तित हो गया। जिला कांग्रेस ने पं0 राम अनन्त पाण्डेय जी को आज का डिक्टेटर घोशित किया था। विद्यार्थियों-व्यापारियों के इस जन समुद्र को श्री पाण्डेय जी ने दो घण्टे तक ललकारा रिमझिम बरसात हो रही थी, बीस हजार से अधिक की भीड़ को टिन के भोंपू से सम्बोधित करना भी बहुत बड़ी बहादुरी का काम था।

लोग कयास लगा रहे थे, कि पुलिस हमला करेगी, लेकिन पुलिस नहीं आयी, वैसे गरम दल की ओर से पुलिस के हमले से निपटने की पक्की तैयारी हो गयी थी। युवाषक्ति के रूख को भांपते हुए पाण्डेयजी ने अहिंसात्मक आन्दोलन का निवेदन करते हुए प्रषासन को पंगु बनाने की बात भी कहा, बलिया “ाहर तो कल से ही पूरी तरह बन्द था। साथ ही स्कूल कॉलेज भी बन्द ही थे।

कचहरी और सरकारी कार्यालय बन्द कराने के लिए इस जन सागर ने कूच किया। लेकिन जलूस के वहॉ पहुचने के पहले ही प्रषासन ने कचहरी और कार्यालयों मे ताला बन्द करा दिया।

विजय की खुषी के साथ जैसे ही जूलूस बिखरा पं0 राम अनन्त पाण्डेय की गिरफ्तारी हो गयी। बलिया “ाहर से निकली आजादी की यह चिनगारी गांव-कस्बों तक पहुंच चुकी थी, जगह-जगह जलूसनिकालने कि तैयारियां “ाुरू हो गर्इ थी।

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साथ ही प्रषासन भी आन्दोलन को कुचलने तैयारी में लग गया। जब रानीगंज, सिकन्दरपुर में जूलूस निकालने की तैयारी होने लगी, तब श्री कालीप्रसाद (रानीगंज), श्री राम दयाल सिंह (बहुआरा), श्री मदन सिंह (सिरसा) को बैरिया थाने की पुलिस ने भारत रक्षा कानून तहत गिरफ्तार कर लिया।

इनके गिरफ्तारी से आक्रोषित जनता ने रानीगंज बाजार में विषाल जूलूस निकाला। सिकन्दरपुर पुलिस ने श्री राधाकृश्ण प्रसाद(सिवान कलां) को भारत रक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया तो वहां भी जनता भड़क उठी। अब यह आन्दोलन किसी दल का नहीं रहा यह जनता का आन्दोलन बन गया।

बलिया बागी बन गया


12 अगस्त 1942

महात्मा गांधी एवं अन्य कांग्रेसी नेताओं की देषभर में हुर्इ गिरफ्तारी के बाद ब्रितानी हुक्मरानों ने अपने आकाओं को संदेष भेज दिया कि भारत में आन्दोलनकारी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद गांधी का ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों आन्दोलन’ काबू में हो गया है।

इसी आषय का एक संदेष ब्रिटिष संसद के भारत मंत्री मिस्टर एमरी द्वारा रेडियो पर प्रसारित भी कराया गया। जिसने बलिया में जल रही बगावत की ज्वाला को और धधका दिया।

बलिया में अब इस आजादी के आन्दोलन का कोर्इ नेता नहीं था। वरन यहां का हर वह युवा नेता जो इस स्वातन्त्र महायज्ञ में कफन बांधकर सड़क पर उतरा था। वह इस आन्दोलन का नेता बन गया।

बलिया जिले के सभी गांव-कस्बों में आन्दोलन की आग अब जलने लगी थी, सभी क्षेत्रो में जूलूस निकाल कर जनसभा करने का क्रम चलने लगा। जिला मुख्यालय पर विषाल जूलूस निकला जिसमें हजारो की संख्या में युवा विद्याथ्र्ाी “ाामिल थे।

“ाहर भ्रमण के बाद यह जूलूस कचहरी के लिए कूच किया। रेलवे स्टेषन के पष्चिमी रेलवे क्रासिंग पर परगना मजिस्ट्रेट मुहम्मद ओवेष सैकड़ों सिपाहियों के साथ रेलवे क्रासिंग का गेट बन्द कराकर जूलूस को रोकने के लिए खड़े थे।

जब जूलूस गेट को जबरन पार करने लगा तो उन्होंने रूकने का आदेष दिया। लेकिन आजादी के दीवानों को किसी ब्रिटिष साम्राज्य के गुलाम अधिकारी आदेष दे यह सुनना गंवारा नही था, तो मानने की बात कहां से आती है,

परगना मजिस्ट्रेट के आदेष पर पुलिस ने लाठीचार्ज “ाुरू किया। तब जूलूस में “ाामिल युवाओं ने रेलवे लाइन की पटरी पर पड़े पत्थरों से पुलिस पर पथराव “ाुरू कर दिया।

दोनों तरफ से सैकड़ों लोग घायल हुए मुहम्मद ओवेष भी नहीं बच पाये। पुलिस पथराव कर रहे युवाओं को पकड़ना चाहती थी, लेकिन कोर्इ भी नहीं पकड़ा जा सका।

अब प्रषासन को समझ में आने लगा था कि इस भीड़ का कोर्इ नेता नही हैं, आधी रात को पुलिस ने विद्यार्थियों के डेरों और छात्रावास पर छापेमारी करके 30 छात्रों को पकड़ा, बलिया कोतवाली में सभी को नंगा करके बुरी तरह से पीटा गया, पेड़ो पर लटकाया गया।

पानी में डूबा-डूबाकर साथियों के नाम-पते पूछे गए, तथा नाना प्रकार की अमानवीय यातनाएं दी गर्इ। बाद में इनमें से कुछ विद्यार्थियों को पुलिस ने छोड़ दिया। लेकिन श्री अवधेष तिवारी(कोथ), श्री रामसुभग सिंह (मुड़ेरा), श्री रमाकान्त सिंह (सरनी), श्री रामचन्द्र तिवारी (चांड़ी), श्री केषव सिंह (जमुआं), श्री परमानन्द पाण्डेय (दुबहड़) और श्री योगेन्द्र नाथ मिश्र (बलिया) आदि को जेल भेज दिया। ये सभी छात्र यहां स्कूलों में पढ़ते थे।

इस आन्दोलन का एक अहम पहलू रहा कि इस जूलूस में जिले के कलक्टर श्री जे0 निगम के पुत्र श्री सुरेष निगम भी अपने साथी छात्रों के साथ “ाामिल थे।

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इस दिन बैरिया थाने के लालगंज बाजार में श्री भूपनारायण सिंह, श्री सदुर्षन सिंह, और प्रभुनाथ तिवारी के नेतृत्व में विषाल जूलूस निकाला और सभा हुर्इ।

अब यह आन्दोलन उग्र हो उठा था। इलाहाबाद, वाराणसी में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जब अपने जिले की खबर मिली तो वह बलिया के लिए चल पड़े।

इन छात्रो ने बलिया पहुचकर लोगो को यह बताया कि अब कांग्रेसी, समाजवादी, क्रांतिकारी सभी विचारो के नेताओं ने आपसी सहमत के आधार पर ब्रिटिष साम्राज्य को नेस्तनाबूद करने के लिए उग्र कार्यक्रम चलाने की अनुति दे दिया है।

इन छात्रों मे श्री पारस नाथ मिश्र, श्री बृजकिषोर सिंह, श्री केदार नाथ सिंह, श्री उमादत्त सिंह, श्री हरिहर सिंह और श्री कैलास पति राय आदि “ाामिल थे। अब सभी प्रकार के संचार साधनों को छिन्न भिन्न कर, ब्रिटिष प्रषासनिक केन्दों पर पूर्ण अधिकार करके ब्रिटिष नौकरषाही को बलियासे भगाना आन्दोलन का मुख्य कार्यक्रमबन गया।

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