Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 14
जनक्रान्ति की जांम्बाज गिरफ्तार“ाहर केातवाल से नेदरसोल ने सरसरी तौर पर बलिया “ाहर में बगावत की “ाुरूआत करने वालों के नाम पूछे। कोतवाल द्वारा यह बताने पर कि यहां बगावत की “ाुरूआत दस अगस्त को नगर कांग्रेस के डिक्टेटर उमाषंकर सोनार ने किया था।
नेदरसोल अपनी फौजी टुकड़ी के साथ श्री उमाषंकर सोनार के दरवाजे पर आ धमका। श्री उमाषंकर अभी थोड़ी ही देर पहले “ाहर की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेकर लौटे थें, अब सोने के लिए लेटे थें।
दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही उठकर दरवाजा खोलें और गिरफ्तार कर लिए गए। फौजी उन पर चारों तरफ से संगीन ताने हुए थें।
नेदरसोल ने इनके परिवार वालों को धमकाते हुए कहा कि इसे ठीक से देख लो कल सुबह इसे गोली मार दी जाएगी।
इसके बाद ताबड़तोड़ गिरफ्तारी “ाुरू हो गयी। इनके सहयोगी श्री सूरज प्रसाद, श्री हीरा लाल पसारी, श्री विष्वनाथ प्रसाद, श्री राजेन्द्र प्रसाद और श्री बच्चा लाल गिरफ्तार कर लिए गये।
इन सभी लोगों को स्टेषन पर खड़ी फौजी ट्रेन के अस्थार्इ हवालात में बन्द कर फौजी गाड़ियां पुन: “ाहर में आयी। 28 लोग फिर गिरफ्तार किये गये।
अंग्रेज, पठान, बलूच फौजियों की क्रूर कैद में इन सभी गिरफ्तार लोगों को भूखे-प्यासे रखा गया। यहां तक कि पेषाब-पैखाना की भी छूट नहीं थी।
23 अगस्त की दोपहर में मार्कस्मिथ के नेतृत्व में बक्सर की ओर से गंगा नदी के जलमार्ग से भारी अंग्रेजी फोज बलिया पंहुच गयी। इस फौज में भी क्रूर किस्म के अंग्रेज, बलूच, पठान और सिक्ख सैनिक थें।
जैसे ही जहाज घाट (अब सरदार रामाषीश चौक, बालेष्वर घाट) पर अपने स्टीमरों को बांधकर यहं फौज पुलिस लाइन पंहुची।
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फौजी ट्रेन में बन्दी बनाकर रखे गये, लोगों को पुलिस लाइन में पंहुचा दिया गया।
इनके पुलिस लाइन में पंहुचते ही मार्कस्मिथ ने फौजियों को इनकी पिटार्इ करने का आदेष दे दिया।
क्रूर सैनिक भूखे भेड़ियों की तरह इन पर टूट पड़े। सबसे पहले इन स्वातत्र्य सैनिकों को फौजियों ने मुर्गा बनाया और इसके बाद इन जीवित इंसानों से जानवरों से भी बुरा सलूक करने लगें।
फौजी इन्हे मुर्गा बनाने के बाद पीछे से बूटों से ठोकरें मारतें, इन्हे पेड़ों पर चढ़ाकर संगीनों से भोंकते और नीचे गिराकर फिर ठोकरें मारते रहें।
इन दरिंदों के कुत्सित घिनौने खेल में 15 वर्श के श्री सूरज प्रसाद (जो पूर्व सांसद स्व. चन्द्रिका प्रसाद के भार्इ थें) पेड़ से गिर पड़े उनके गिरने के बाद अचेतावस्था में भी ब्रितानी गुलाम सैनिक मरने की हद तक उनकी पिटार्इ करते रहें, जब अधिकारियों को यह मालूम हुआ। तब तीन घण्टे बाद दरिन्दगी का यह खेल बन्द हुआ।
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“ााम को चार बजे ब्रितानी साम्राज्य के अत्याचारी प्रषासक नेदरसोल के स्पेषल आर्डिनेन्स से डिप्टी कलक्टर जगदम्बा प्रसाद की अन्यायी विषेश अदालत में इन सभी बन्दियों को पेष किया गया। आधे घण्टे तक अदालती नौटंकी के बाद बगैर बचाव का कोर्इ अवसर दिए।
ब्रिटिष गुलाम परगना मजिस्ट्रेट ने श्री उमाषंकर सोनार, श्री हीरा पंसारी, श्री विष्वनाथ प्रसाद, श्री राजेन्द्र प्रसाद और श्री बच्चा लाल को 7-7 वर्श की कैद-बा-मषक्कत तथा 20-20 कोड़े की सजा सुनाया।
अपने आकाओं की “ााबासी पाने के लिए श्री जगदम्बा प्रसाद ने बेंत की सजा को तुरन्त सार्वजनिक स्थान पर देने का आदेष दिया।
इस अदालती आदेष के अनुपालन के लिए इन पांचों लोगों को बलिया नगर के मध्य में स्थित चौक (अब “ाहीद पार्क-चौक) में लाया गया। जहां इन्हे कोड़ों से पीटा जाने लगा। सजा के 20 कोड़ों की गिनती पूरी होने ही वाली थी, कि नेदरसोल चौक में आ पंहुचा।
उसने कहा- बागियों को ऐसे कोड़ों से सजा नहीं दी जाती है, इनके कपड़े उतारों और नंगे बदन पर मेरे सामने दुबारा 20-20 कोड़ो लगाओ।
क्रूरता की इस पराकाश्ठा को बड़े ही धैर्य और साहस से अपनी जन्मभूमि की आजादी के लिए बलिया की माटी के लालों ने सहा।
ब्रिटिश फौज की लूटमारबलिया पंहुची ब्रितानी फौज “ाासन-प्रषासन के नियम कानूनों को कौन कहे सामान्य मानवीय संवेदना से “ाून्य हो, लूटेरों की तरह से बलियावासियो को लूट रही थी।
सतनी सराय मुहल्ले में श्री बरसू और श्री गंगा विषुन का मकान, भृगु मन्दिर के पास क्रान्तिकारी युवा श्री रामनाथ प्रसाद का मकान फौजियों ने फूंक दिया।
इनके पिता श्री मंगल राम और बड़े भार्इ श्री विष्वनाथ प्रसाद को गिरफ्तार करके इनकी इतनी पिटार्इ किया कि दो-तीन दिन बाद ही वह चल बसें। श्री राधाकृश्ण (ब्रह्माइन) के बलिया “ाहर में स्थित मकान और दुकान का सारा सामान लूट लिया। उनके भतीजे को उठा ले गये।
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श्री बच्चा बाबू स्वर्णकार की पूरी दुकान लूट लिया। कपड़ा व्यवसायी श्री गोपीनाथ सिंह से पिस्तौल की नोंक पर बारह हजार रूपये वसूल कर लिए। श्री नारायण राम, सेठ श्री बालगोविन्द मल्लाह,
श्री राधाकृश्ण प्रसाद ‘बच्चा बाबू’ श्री जग्गू लाल आदि को आतंकित करके “ाहर कोतवाल और फौजी अफसरों ने मनमाने पैसे वसूले। श्री बेनी माधव की दुकान से 150 बोरा चीनी लूट ले गये।
बच्चा बाबू सर्राफ के सोने चांदी की दुकान से सारे गहने आलमारियों को तोड़कर लूट लिए साथ में उनकों भी उठा ले गये। चार हजार रूपये लेकर छोड़ा। श्री देवी राम गुदरी बाजार से पांच हजार रूपये नगद वसूला। चौक स्टेषन रोड के वस्त्र व्यवसायी श्री बच्चा प्रसाद अग्रवाल के यहां रूपये और बन्दूक लूटने पंहुचे तो भय से श्री बच्चा बाबू अग्रवाल बेहोष हेाकर गिर पड़े।
जिससे उनकी बन्दूक और रूपया दोनों बच गया। बाबू षिव प्रसाद गुप्त की हनुमानगंज कोठी का सारा सामान लूटवाकर मार्क स्मिथ ने 19 बैलगाड़ियों पर लदवाकर पुलिस लाइन में भेजवा दिया।
पुलिस और फौजियो की लूटपाट के साथ साथ बलिया “ाहर में दहषत फैलाने के लिए आकाष में गष्त कर रहा ब्रिटिष हवार्इ जहाज बार-बार नीचे से करके उड़ाया जा रहा था, इसके बारे में बताया गया कि ब्रिटिष फौज इस तैयारी से आर्इ थी, कि जरूरत पड़ने पर इस फौजी जहाज से बलिया पर बमों की बरसात की जा सके।
ब्रितानी सरकार की इतनी बड़ी दमनात्मक कार्यवाही के बीच भी श्री चित्तू पाण्डे, श्री रामनाथ प्रसाद, श्री राधा गोविन्द सिंह, आदि प्रमुख नेता फरार हो गये थें। श्री चित्तू पाण्डे, गड़हा क्षेत्र में भूमिगत हो गये थे। लेकिन युवा कार्यकर्ता जिन्हे पुलिस नही ंपकड़ पायी थी।
बन्दी साथियों को छुड़ाने के लिए उतावले हो रहें थे। 15-20 युवक जनता को इकट्ठा कर जुलूस निकालने के लिए चौक में ंपहुचकर भाशण देने लगे। ये लोग जनता को ललकार कर घरों से निकलने को कह रहें थे। जनता तो नहीं आयी।
अलबत्ता पुलिस ने चारों ओर से इन लोगों को घेर लिया। तत्काल तो ये लोग चौक में लगे गुड़हल, चांदनी कनेर के झुरमुटों में छिप गये। लेकिन जब पुलिस का घेरा तंग होने लगा तो वह विवष हो गए। तभी बंगाली डा. प्रबोध कुमार जो इस पूरी घटना केा देख रहें थे।
अपने क्लिनिक से बाहर निकलकर नारे लगाने लगें बोलो ‘ बच्चों पुलिस हमारे भार्इ हैं, इतने में पुलिस का ध्यान बटा औश्र सभी युवक भाग निकलें इसमें “ाामिल श्री राम अषीश पैदल ही गंगा किनारे होते हुए बक्सर चले गये और वहां से ट्रेन पकड़कर हाबड़ा चले गये। बाकी के लोग भी कुछ गंगा के उस पार कुछ गड़हा क्षेत्र में जा छिपे।
इधर थानों पर कब्जा करने के अभियान में निकले श्री महानन्द मिश्र और श्री विष्वनाथ चौबे अपने साथियों के साथ हलधरपुर थाने (अब मऊ जिले में) पर जा पंहुचे 23 अगस्त को ही लगभग 5 हजार जनता के साथ थाने पर कब्जा कर उसे जला दिया गया। यहां के थानेदार और सिपाही पहले भाग गये थे। जो 4-5 सिपाही वहां थें वह भीड़ को देखते ही सादी पोषाक में भाग निकलें।
यहां से ये लोग बिल्थरारोड पंहुचे तय किया गया कि कल 24 अगस्त को जनता की भीड़ जुटाकर उभांव थाने पर अधिकार किया जाएगा। बलिया से थानों पर कब्जा करने पंहुचे श्री महानन्द मिश्र और श्री विष्वनाथ चौबे को देखकर बिल्थरारोड क्षेत्र की जनता का उत्साह दूना हो गया था।
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इधर कैप्टन मूर की फौज जो आजमगढ़ की ओर से चली थी। रसड़ा पंहुच चुकी थी। कैप्टन मूर को हलधरपुर थाने पर कब्जा होने और 24 अगस्त को उभांव थाने पर हमले की जानकारी रात में ही मिल गयी। कुछ सिपाही लेकर मूर बिल्थरारोड चल पड़े।
24 अगस्त को सुबह नौ बजे लगभग 15 हजार लोगों की भीड़ जो लाठी, भाला, बल्लम, गंड़ासा से लैस थी, उभांव थाने की ओर बढ़ने लगी। इस भीड़ को श्री पारसनाथ मिश्र ने अपने ओजस्वी भाशण से जोष भर दिया।
जैसे ही ये लोग थाने के पास पंहुचने वाले थें, कि खबर मिली कि कैप्टन मूर अपनी फौज के साथ बिल्थरा बाजार में पहुच कर श्री देवेन्द्र सिंह और श्री द्वारिका प्रसाद के मकान में आग लगवा दिया है।
इस बात की जानकरी होते ही भीड़ ने पहले फौज से निपटने का फैसला कर लिया।
अनुभवी नेता श्री महानन्द मिश्र, श्री विष्वनाथ चौबे ने कहा कि फौज के पास आधुनिक हथियार हैं, हम लोग उनका सामना नहीं कर पाएंगे। लेकिन भीड़ अनियंत्रित हो चुकी थी। इस आत्मघाती संघर्श से भीड़ को रोकने के लिए श्री महानन्द मिश्र ने कुछ राउण्ड हवार्इ फायर भी किया।
परन्तु जनता उन्मत होकर कैप्टन मूर की फौज से भिड़ने बाजार की ओर चल पड़ी। रेलवे स्टेषन पंहुच कर लोग रेल पटरियों को उखाड़ने लगे।
जिसे देखकर फौजियों ने फायर करना “ाुरू कर दिया। इस फायरिंग में आन्दोलन के प्रमुख नेता, दयानन्द हार्इ स्कूल के सहायक अध्यापक श्री चन्द्रदीप सिंह और टंगुनिया के श्री अतवारू भर “ाहीद हो गये।
फौज की अंधाधुंध फायरिंग का अपनी एकनाली- दो नाली बन्दूक से जवाब देते हुए भीड़ पीछे हट गयी।
श्री महानन्द मिश्र, श्री विष्वनाथ चौबे और श्री पारसनाथ मिश्र ताड़ीबड़ा गांव, संवरा होते हुए गड़हा क्षेत्र के कथरिया गांव में आ पंहुचे जहां श्री चित्तू पाण्डे पहले से ही छिपे बैठे थे। ये सभी नेता एक नाव पर सवार होकर गंगा नदी पार कर बिहार चले गये।
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