Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 10
सिपाहियों की बन्दूकें छिनी।
चितबड़ागांव- 13 अगस्त को 8 सिपाही बलिया जेल से कैदियों को लेकर केन्द्रीय कारागार गाजीपुर पंहुचाने गये थें। ट्रेनों की आवाजाही बन्द हो जाने के कारण ये लोग रेलवे लाइन पकड़कर पैदल बलिया वापस जा रहें थें।
चितबड़ागांव की स्वायत सरकार के कार्यकर्ताओं ने जब इनको देखा तो इनकी बन्दूकें छीनने के लिए दौड़ा लिया। ये लोग भागने लगें चितबड़ागांव-फेफना के बीच रेलवे पुल पर पंहुचकर ये लोग फायर करने लगें।
लेकिन इनका पीछा कर रहे, स्वायत सरकार के सैनिक जिनका नेतृत्व श्री षिवपूजन पाण्डे, श्री जनार्दन तिवारी, श्री भोजदत्त यादव, श्री राजनारायण तिवारी, श्री राम चरितर तिवारी, श्री रामनगीना तिवारी, श्री राजनारायण गुप्त, श्री अक्षय कुमार गुप्त और श्री षिवनारायण सिंह (बंधैता) कर रहें थे। इनके पीछे सैकड़ों युवकों की भीड़ दौड़ी चली आ रही थी।
दूसरी ओर फेफना की ओर से भी जनता दौड़ पड़ी। अब ये हथियार बन्द सिपाही दोनों ओर से घिर चुके थें। इसी बीच श्री षिवपूजन पाण्डे ने एक सिपाही की बन्दूक छीन लिया। तब जनता ने इन सभी पर काबू कर लिया।
इनसे छिनी गयी 7 बन्दूकें स्वायत सरकार चितबड़ाांव के यहां जमा हुर्इ। एक बन्दूक श्री षिवपूजन पाण्डेय को इनाम में दी गयी। अपनी बन्दूक लुटवाकर बलिया पंहुचे सिपाही जब पुलिस लाइन इन्सपेक्टर को अपनी व्यथा बताये तो फोर्स फेफना पंहुची।
अनेक घरों में पुलिस ने तालाषी लिया। सिंहपुर के श्री बासुदेव सिंह को बुरी तरह मारा पीटा, नरहीं के श्री राम जतन तेली की मूंछे उखाड़ ली और दहषत फैलाने के लिए अंधाधुंध फायरिंग किया।
जिससे फेफना के श्री सागर राम की मौके पर मौत हो गयी। बंधैता के षिवनारायण सिंह और उनके पट्टीदारों के घरों की तालाषी लिया। लेकिन बन्दूकें तो चितबड़ागांव में थी। पुलिस खाली हाथ लौट आयी।
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गड़हा भी गरजा
नरहीं थाने से 5 चौकीदार अपने-अपने गांवों को वापस जा रहें थे। सोहांव स्कूल पर जनता ने उनकी वर्दी-पेटी उतरवाकर जला दिया और उनको नंगे खड़ा कराकर बहुत देर तक उनसे ‘महात्मा गांधी की जय’ बन्दे मातरम का नारा लगवाते रहें, फिर छोड़ दिया।
श्री ओंकारा नन्द जी (नरहीं), श्री हरिद्वार राय, श्री ब्रम्हदेव राय (नारायणपुर) श्री षिवमुनी मल्लाह (कोटवां), श्री जगदीष राय, श्री जगतलाल (नरहीं), श्री बाला राय (सोहांव), डा. रामदहिन राय (लक्ष्मण पुर), तथा श्री जंगहादुर सिंह (चौरा) के नेतृत्व में भरौली की जनता ने 11 बजे दिन में सड़क का पुल तोड़ दिया।
कोरन्टाडीह डाकघर का सारा सामान जला दिया। इसी दिन कोटवां नारायणपुर और उजियार में कोटवां स्टीमर घाट को क्षतिग्रस्त कर आग लगा दिया। उजियार में “ाराब की दुकान का “ाराब बहा दिया। गांजा जला दिया।
कमिश्नर से गुहार
कमिष्नर से मदद मांगने के लिए बलिया के कलक्टर श्री जे. निगम ने अपने विष्वस्त तहसीलदार राम लगन सिंह जो आज ही पदोन्नति पाकर डिप्टी कलक्टर बने थे, को राय बहादुर काषी नाथ मिश्र की कार द्वारा बन्दूक, रिवाल्वर की सुरक्षा में वाराणसी भेजा।
तेज तर्रार आर्इ0 सी0 एस0 श्री निगम साहब दोहरा खेल खेल रहें थे। इधर उन्होने वाराणसी से फौज मंगाया, दूसरी ओर ब्रिटिष “ाासन के खैरख्वाहों की बैठक भी बुलायी।
जिसमें “याम सुन्दर उपाध्याय, खां बहादुर और नसीरूद्दीन सहित थोड़े लोग “ाामिल हुए, लेकिन इस बैठक में भी यहीं बात सामने आयी कि जेल में बन्द नेताओं को रिहा करके ही स्थिति को सम्भाला जा सकता है।
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बलिया आजाद हुआ
19 अगस्त 1942
विगत दस दिनों ब्रितानी “ाासन को बलिया से उखाड़ फेंकने के लिए लगे बलियावासी आज निर्णायक जंग के लिए मुख्यालय की ओर कूच किये।
जिले के कलक्टर मिस्टर जे. निगम और पुलिस कप्तान मिस्टर जियाउद्दीन अहमद कलेक्टे्रट में बैठे, जिले में चल रहे विप्लव से निपटने की योजना बना रहें थें, तभी एक सिपाही ने आकर सूचना दिया कि बांसडीह से बलिया आने वाली सड़क से लगभग 20 हजार लोगों का बगावती जत्था कचहरी की तरफ बढ़ा आ रहा है।
तब तक दूसरा सिपाही दौड़ते हुए पंहुचा हजूर सिकन्दरपुर वाली सड़क से 25 हजार बागियों का जत्था कलक्ट्री पर कब्जा करने चला आ रहा है।
तीसरा, चौथा हर हरकारा बुरी खबर लेकर ही आ रहा था। लाखों लोगों का जन सैलाब जिसमें सभी के हाथों में कुछ न कुछ हथियार थें। लाठी, भाला, बल्लम, गंड़ासा, बर्छी, रम्मा, टांगी, कुदारी, र्इंट, पत्थर से लैस इस जन समूह में कुछ लोग मिट्टी की हाड़ी में हड्डा, हड्डी, चिंउटा, और बिच्छू भी लेकर चले आ रहें थें। बलिया “ाहर की हर सड़क से ऐसे जत्थे कचहरी की ओर बढ़ रहें थें।
इन्कलाब के नारे लगाने वाली भीड़ की आंखों मे खून उतर आया था। ये आंखें सिकन्दरपुर में बच्चों पर घोड़ा दौड़ने वाले थानेदार अषफाक, “ाहर में गोली से 9 लोगों भूनने वाले डिप्टी कलेक्टर मु0 औबेस और बैरिया में खून की होली खेलने वाले थानेदार काजिम हुसेन को खोज रही थी। जिनके यहां छिपे हुए अफवाह थी।
इन खौफनाक खबरों ने कलक्टर और पुलिस कप्तान के होष उड़ा दिए। आनन फानन में कलक्टर ने खजाने की नोटो के नम्बर नोट कर के उन्हे जलाने का आदेष दिया ताकि ये रुपये बागियों के हाथ न लगने पाये।
डिप्टी कलक्टर जगदम्बा प्रसाद की देख रेख में उस वक्त खजाने मे मौजूद लगभग 9 लाख रुपयों में आग लगा दी गर्इ । 5-6 लाख रुपये तो जल गये लेकिन 2-3 लाख रूपये खजाने के कर्मचारियों और संतरियों ने हथिया लिए।
“ाहर में पहुॅचने वाली हर सभी सड़कों से उमड़ते आ रही सषस्त्र भीड़ को देखकर कलक्टर और पुलिस कप्तान ने नरम दल के कॉग्रेसी नेताओां को ढाल बनाने की रणनीति बनार्इ । दोनो अधिकारी तुरन्त जेल की ओर चल दिए।
इन लोगो ने कलेक्ट्रेट कर्मचारियों से यह सन्देष प्रसारित करने को कहा कि भीड़ मे जाकर लोगो को बताओं कि कलक्टर साहब जेल मे बन्द सभी आन्दोलनकारी नेताओं कार्यकर्त्ताओं को रिहा कर रहे है। जैसे ही जनता के बीच यह सन्देष फैला लगभग 10हजार की भीड़ जेल की ओर मुड़ गर्इ।
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ज्ोल के अन्दर पहुॅचकर दोनो अधिकारियों ने जिला कॉग्रेस के अध्यक्ष श्री चित्तु पाण्डे से विनती करते हुए कहा कि- पाण्डे जी आप सभी लोग अब जेल से बाहर चलिए, और स्थिति को सम्भालिए, यहा पहुॅची भारी भीड़ को सम्थालना हमारे बस की बात नही है आप इस भीड़ को वापस जाने के लिए कहिए।
इतना कहकर श्री पाण्डे जी के उत्तर की प्रतिक्षा किए बगैर कलक्टर श्री जे0निगम ने जेल का फाटक ख्ुलवा दिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के सभी सैनिक जेल से बाहर आ गये। विजय के गगन भेदी नारों से जेल परिसर गूंज उठा। इस अप्रत्याषित घटनाक्रम में जेल में बन्द और दूसरे कैदी भी आजाद हो गये।
इन जननेताओं की जेल से रिहार्इ से जनसमूह प्रसन्न तो था। लेकिन यह विपुल जन समूह केवल नेताओं की रिहार्इ के लिए नहीं उमड़ा था। वह जिले के सभी कार्यालयों पर कब्जा करने और ब्रिटिष “ाासन के दरिंदे अधिकारियों को दण्ड देने आज सिर पर कफन बांध सड़कों पर आये थे।
क्षुभित भीड़ कार्यालयों पर कब्जा करने और दोशियों को सामने लाने की मांग करने लगी। भीड़ नेताओं पर ब्रिटिष “ाासन के अधिकारियों से मिल जाने का आरोप भी लगाने लगी। नौजवानों की भीड़ गुस्से से उबल रही थी। कांग्रेस नेताओं ने भीड़ को टाउनहाल में चलने को कहा।
भीड़ में से कुछ जिम्मेदार लोगों ने कहा, इस समय जो काम होना चाहिए वह किया जाये। मिटिंग करने से क्या होगा। कुछ लोग नेताओं की खुलेआम निन्दा भी करने लगें।
श्री मंगल सिंह, परषुराम सिंह, श्री रामनाथ प्रसाद, श्री राम लक्षण पाण्डे और श्री नगीना चौबे जैसे गरम दल के नेता सीधे-सीधे दोशारोपण करने लगे।
इस बीच कुछ युवा नेताओं ने श्री महानन्द मिश्र और श्री विष्वनाथ चौबे से बातचीत करके यह निर्णय करा लिया कि मीटिंग में चाहें जो कुछ भी तय हो।
हम लोग अपनी निर्धारित योजना कार्यालयो पर कब्जा करने और दोशियों को दण्डित करने की कार्यवाही को पूरा करेंगे। नेताओं के पीछे भीड़ टाउन हाल की ओर चल दी। नेताओं के बीच की यह नोक-झोंक ने भीड़ का जोष ठण्डा कर दिया।
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“ाासन तंत्र पर अधिकार केा तत्पर भीड़ को नेताओं ने मीटिंग और प्रस्तावों की उलझन में फंसाकर क्रान्ति को चरमोत्कर्श पर पंहुचने से रोक दिया। जिसके गम्भीर परिणाम बाद में बलिया को भुगतने पड़े।
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