Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 3

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Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 3

जनक्रांति की ओर

कौमी सेवादल के कप्तान श्री महानन्द मिश्र उपकप्तान द्वय श्री राजेष्वर तिवारी, श्री विष्वनाथ चौबे तथा श्री श्रीपति कुॅवर, जो समाजवादी विचाराधारा के उग्र कार्यकर्त्ता थे।

इन लोगों ने पूरे जिले में प्रषिक्षण षिविर लगाकर अनुमानत: पांच हजार युवकों को प्रषिक्षित किया। कप्तान श्री महानन्द मिश्र की उग्र प्रवृति को देखते हुए। लखनऊ के गांधीवादियों ने उनको हटाकर गांधीवादी श्री बरमेष्वर पाण्डेय को सेवादल का जिला कप्तान बना दिया। लेकिन इससे इन लोगों के तेवर और काम में कोर्इ फर्क नहीं पड़ा।

बलिया जिले अब कोर्इ दल, विचारधारा संगठन नेता का कोर्इ मायने नहीं रह गया था। गांधीवादी, समाजीवादी, कम्युनिस्ट पार्टी, नरम दल, गरम दल यहां तक कि ब्रितानी कूटनीति से मुस्लिम लीग की जिले में स्थापना के बावजूद मुसलमानों का पढ़ा-लिखा प्रभावषाली वर्ग भी साथ हो गया था। मात्र कुछ कट्टरपंथी और जाहिलों की जमात मुस्लिम लीग के साथ थी।

ग्राम रक्षक दलों की स्थापना में अहम भूमिका निभा रहे श्री षिवपूजन सिंह (सुखपुरा), श्री जमुना सिंह (दतौली), श्री श्रीपति कुॅवर (सहतवार), श्री बृन्दा सिंह (सकरपुरा), श्री गजाधर “ार्मा (बंकवा), श्री बृन्दा सिंह चौबे और श्री राम लक्षण तिवारी (बलिया) श्री हरगोविन्द सिंह (नगरा) और श्री महानन्द मिश्र (बलिया) एकमत होकर गांवों में युवाओं का संगठन बनाकर उन्हें रक्षात्मक और प्रहारात्मक ट्रेनिंग दें निर्णायक क्रांति के लिए तैयार कर रहे थे।

इस जनक्रांति को ‘किसान क्रांति’ के रूप में जाना जाता है। क्योंकि कौमी सेवादल के कप्तान श्री महानन्द मिश्र और दोनो उप कप्तानों की गिरफ्तारी के बाद, दल के कुछ बहादुर कार्यकर्त्ताओं को छोड़कर सेवादल एक वर्दीधारी सेवादल बनकर रह गया। लेकिन बांसडीह में इसके सैनिकों ने अच्छी भूमिका निभाया था।

किसानों का संगठन करने में श्री विश्वनाथ प्रसाद ‘मर्दाना’ श्री मुन्नीलाल वर्मा, श्री रामबड़ाई वर्मा, श्री शिवदत्त प्रसाद, श्री शिव प्रसाद ‘सुल्तानपुर’ आदि ने अहम् भूमिका निभायी। इस जनक्रांति को ग्राम रक्षक दल और किसान संगठन ने ही वास्तविक धार दिया था।

बलिया में ‘अगस्त क्रांति’ के दस दिन पूर्व ही ब्रितानियों से आजादी छीनने की पूरी तैयारी गरम दल के नेताओं द्वारा की जा चुकी थी। अब बस अवसर की प्रतिक्षा थी।

विश्वनाथ प्रसाद ‘मर्दाना’


7 अगस्त 1942 को बम्बई की जनसभा में जैसे ही महात्मा गांधी ने कहा कि- ‘‘हम अपनी स्वतंत्रता लड़कर प्राप्त करेगें। वह आकाश से टूटकर नहीं आ सकती। यह मेरे जीवन की अन्तिम लड़ाई होगी।’’ किन्तु जो मेरे अहिंसा के सिद्धान्त से थक गयें हो, वे मेरे साथ ने आवें।

 बलिया में आजादी की आग सुलगने लगी। नारे गूंज उठे ‘अंग्रेजो भारत छोड़ों’ ‘करो या मरो’

चेतावनी


इस क्रांति के प्रारम्भ होने के दस दिन पूर्व समाजवादी नेता बाबू सम्पूर्णानन्द जी (पूर्व मुख्यमंत्री उ0प्र0) ने वाराणसी से अपने एक विष्वस्त साथी श्री रासबिहारी सिंह (पूर्व राज्यमंत्री उ0प्र0) को बलिया भेजकर सभी को आगाह किया था कि 9 अगस्त 1942 को ग्वालियां टैंक मैदान बम्बई में होने वाली निर्णायक जनसभा के पूर्व आन्दोलन से जुड़े नेताओं-कार्यकर्त्ताओं की व्यापक स्तर पर गिरफ्तारी करने की सरकार की योजना है,

इसलिए सभी लोग सावधान रहे, भूमिगत होकर काम करें। लेकिन कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं कार्यकर्त्ताओं पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं पड़ा। ठाकुर जगन्नाथ सिंह, युवानेता श्री तारकेश्वर पाण्डेय पहले से ही जेल में बन्द थे। कांग्रेस जिला अध्यक्ष श्री चित्तू पाण्डे, ग्राम रक्षक दल के संयोजक श्री शिवपूजन सिंह, श्री बालेश्वर सिंह, श्री युसूफ कुरैशी गिरफ्तार हो गये। जिससे इस आन्दोलन में वह अपना योगदान नहीं दे पाये।

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क्रांति की कसमसाहट


8 अगस्त 1942 र्इ0 को बलियावासी जगे तो अपनी दिनचर्या के हिसाब से लेकिन सभी के दिल में एक विचित्र बेचैनी थी, लगता था इस जिले की आबोहवा में आज कोई ऐसी चींज घुल गयी है।

जिसके कारण सभी का मन बेचैन हो गया है, किसान पषुओं को चारा पानी करते हुए, खेतों में लगी फसल को निहारते बेचैन है, व्यापारी दुकान तो खोला है लेकिन बेमन बैठा है, स्कूल, कचहरी भी खुले है लेकिन किसी के मन में अनहोनी की बेचैनी यहां भी तैर रही थी।

सभी की निगाहें (7 अगस्त) को बम्बर्इ में बापू द्वारा दिए गए भाशण का निहितार्थ निकालने वाले किसी व्यक्ति को खोज रही थी।

बापू ने कहा था- हम अपनी स्वतंत्रता लड़कर प्राप्त करेंगे। वह आकाश से टूटकर नहीं आ सकती। यह मेरे जीवन की अन्तिम लड़ाई होगी। किन्तु जो मेरे अहिंसा के सिद्धान्त से थक गए हो। वह मेरे साथ न आवें।

एक तरफ वही महात्मा गांधी उसी बम्बर्इ से नारा दे रहे है कि देशवासियों ‘करो या मरो’ अंग्रेजों भारत छोड़ो। दूसरी तरफ अहिंसा के सिद्धान्त की दुहाई भी दे रहे है। कसमसाहट इस बात की है कि हम क्या करें। केवल नारे लगाये अंग्रेजों भारत छोड़ो? अंग्रेज नारा सुनकर भाग जाएगा। फिर हमसे यह क्यों कह रहे हैं? करो या मरों

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आखिर में एक धुधंली खबर बम्बई से निकली जिससें यह मालूम हुआ कि महात्मा गांधी जी अहिंसात्मक आन्दोलन के साथ-साथ इस बात की भी इजाजत दे दी है कि भारत की आजादी के लिए प्रत्येक भारतवासी अपना पथ प्रदर्शक स्वयं बने, स्वविवेक से काम लेकर आन्दोलन को आगे बढाए, बलिया मे हिलोरें ले रही बगावत के लिए इतना संकेत काफी था।

9 अगस्त 1942 को अलसुबह से ही पुलिस की चहलकदमी ने कल छायी बेचैनी को आक्रोश में बदलना शुरू कर दिया। गरम दल के भूमिगत कार्यकर्त्ता गंगा स्नान घाट से मन्दिरों तक फैलकर क्रांति के बारूद को सुलगाने लगे। इस बीच पुलिस ने नामचीन कांग्रेसी कार्यकर्त्ता श्री राधामोहन सिंह,

श्री राधागोविन्द सिंह, श्री परमात्मानन्द सिंह तथा श्री रामनरेष सिंह को गिरफतर कर लिया। बड़े नेताओं, कांग्रेस के जिला अध्यक्ष श्री चित्तू पाण्डेय, डा0 जगन्नाथ सिंह, श्री तारकेष्वर पाण्डेय, श्री शिवपूजन सिंह, श्री बालेष्वर सिंह पहले से जेल में बन्द थे ही।

उधर बम्बई में भी आज ही प्रात: महात्मा गांधी, श्री जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि नेताओं को गिरफ्तार कर आगा खां महल में नजरबंद कर दिया गया था। लेकिन इसकी कोर्इ पक्की खबर नहीं मिल पा रही थी।

आज की तरह इतने टीवी चैनल, अखबार और फोन-मोबार्इल तो थे नहीं, बलिया “ाहर में दो लोगों के पास रेडियों का लाइसेन्स था, उस पर भी बिजली नहीं रहती थी, इससे गांवों की स्थिति का अन्दाजा आप लगा सकते है, फिर रेडियों पर पूज्यबाबू और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी वाली खबर कुछ लोगों ने सुन लिया था।

युवक कार्यकर्त्ता उड़ती खबरों को सुनकर उतावले हो रहे थे, लेकिन कांग्रेस के “ाहर मंत्री श्री उमाषंकर सोनार खबरों की पुश्टि करने के बाद आपस में बैठक करके ही कोर्इ कदम आगे बढ़ाना चाहते थे।

आखिर 15 वर्श के बहादुर युवा श्री सूरज प्रसाद ने देर रात तक वह हिन्दी अखबार प्राप्त ही कर लिया, जिसमें अंग्रेजी सरकार द्वारा गांधी जी और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी की खबर छपी थी।

सेंसर के कारण खबर काफी छोटी छपी थी, उसमें केवल यही लिखा था कि सरकार ने गांधी जी एवं कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर आगा खां महल पूना में नजरबन्द कर दिया है, कुछ अन्य नेताओं को अहमद नगर किले में रखा गया है।

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उस समय लाउडस्पीकर नही था, टीन का भोंपा बनाकर प्रचार किया जाता था। वालन्टियर कार्यकर्त्ता कल हड़ताल कराने की तैयारी में रातभर जुटे रहे, किसी की आंखों में नींद नही थी।

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