Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 3
जनक्रांति की पृष्ठभूमि
बलिया में हुर्इ 42 की जनक्रांति कोर्इ औचक प्रतिक्रिया नहीं थी। र्इस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत पर अधिकार जमाने की कड़ी में सन् 1784 र्इ0 में जब गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के साथ अवध के नवाब ने सुरक्षा सन्धि कर लिया। तब से इस जिले पर ब्रिटिष साम्राज्य के गुलामी की छाया पड़ने लगी।
इधर कम्पनी सरकार द्वारा छल-कपट करके राजे-रजवाड़ों में फूट डालकर उनका राज हड़पने के बाद जब अंग्रेज निलहे व्यापारी और जिलों में तैनात अंग्रेज अधिकारी जन सामान्य से बेगार और जबरन धन उगाही करने के साथ-साथ जनता की अस्मिता और आबरू उतारने का घिनौना खेल खेलने लगे, तथा इनके धर्मगुरूओं द्वारा भारतीय जीवन में रचे-बसे देवी-देवताओं का मखौल उड़ाने के साथ धर्म परिवर्तन कराने के लिए जोर जबरदस्ती की जाने लगी तो जनता में विद्रोह की आग सुलगने लगी।
विद्रोह की इस आग को 1857 की रोटी-कमल संदेष के साथ निकले संयासी और मौलवी, फकीर वेषधारी आजादी के परवानों ने धधकाया। बलिया के हर गांव-कस्बे में प्रथम स्वतंत्रता आन्देालन की यह गुप्त योजना काफी सफल ढंग से संचालित हुर्इ थी।
इसी कारण बलिया के मंगल पाण्डे को फॉसी देने की घटना बलिया में भ्रामक ढंग से पहुंचार्इ गयी थी। लेकिन इसका प्रत्यक्ष प्रकटीकरण कुॅवर सिंह की बगावती फौज का स्वागत करके बलिया वासियों ने किया।
Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 2
1910,1920-25,1930-32 और 1941 के कांगे्रसी आन्दोलन में भी बलिया ने इसी कारण से आगे बढ़कर भाग लिया। 1942 में यहां लोगों को महात्मा गांधी इस नारे ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ ने कुछ कर दिखाने का अवसर दे दिया।
सन् 1939 में द्वितीय महायुद्ध छिड़ जाने के बाद ब्रिटिष हूकूमत गुलाम देषों में बहुत सख्ती से दमनात्मक रवैया अपना रही थे। इस कारण लोग अपनी सुरक्षा के लिए लामबन्द होना “ाुरू हो गये। सभी विचाराधारा के लोग युवाओं को संगठित कर रहे थे।
कांग्रेस ने भी युवाओं की ‘कांगे्रस कौमी सेना’ का गठन कर युवकों को हथियार विहीन सैनिक ट्रेनिंग देना “ाुरू कर दिया था। बलिया में श्री महानन्द मिश्र, श्री विष्वनाथ चौबे, श्री श्रीपति कुॅवर तथा श्री राजेष्वर प्रसाद जो लखनऊ और इलाहाबाद के ट्रेनिंग
कैम्पों से ट्रेनिंग करके आये थे। बलिया के गांवों में षिविर लगाकर हजारों युवकों को नि:षस्त्र सैनिक ट्रेनिंग दिया। इसमें से सैकड़ों युवाओं ने अपने गांव और पड़ोस के गॉवो को यह ट्रेनिंग दिया। 1942 की जनक्रांति में इन युवक की बहुत बड़ी भूमिका रही।
ब्रितानी सरकार द्वारा भारत को बलात् द्वितीय महायुद्ध में घसीट लिए जाने से पूरा देष बौखला उठा था। इसके प्रतिरोध में कम्युनिस्ट, समाजवादी विचारधारा के लोग भी एकजुट होकर किसान मजदूर-व्यापारी सभी को लामबन्द कर अब आर-पार की लड़ार्इ की तैयारी का संरजाम जुटा रहे थे।
बलिया में एक ओर जहॉ ‘कांग्रेस कौमी सेना’ जिसका नाम बदलकर अब ‘कांग्रेस कौमी सेवादल’ रख दिया गया था। जिले के गॉव-कस्बे में कैम्प लगाकर युवकों को ट्रेनिंग दे रहा था। वही दूसरी ओर ‘ग्राम रक्षक दल’ के नाम से गांव-गांव में समितियां गठित हो रही थी। कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों द्वारा ‘किसान संगठन’ के नाम से गांव के किसानों को लामबन्द किया जा रहा था।
1941 में द्वितीय महायुद्ध का स्वरूप कुछ बदल सा गया। नाजी जर्मनी के तानाषाह हिटलर ने विष्वासघात करके समाजवादी सोवियत संघ पर चढ़ार्इ कर दिया। इधर एषिया में जापान ने भी हिटलर और मुसोलिनी के पक्ष में होकर अनेक ब्रिटिष उपनिवेषों पर कब्जा कर लिया।
जापान की इस विजय ने ब्रिटिष साम्राज्य की हालत खराब कर दिया। ब्रिटिष हूकूमत ने अपनी स्थिति को सम्भालने के लिए व्यक्तिगत सत्याग्रह चला रही कांग्रेस से सुलह-समझौते की बात रखी। जिस पर कांग्रेस ने जनवरी 1942 में अपना व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन वापस ले लिया। इस थोड़ी सी चूक में ब्रितानियों ने अपना ‘क्रिप्स मिषन’ नाटक खेल दिया।
इस सोचे-समझे नाटक के खेल में ब्रिटिष हुक्मरानों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में साथ मिलकर चल रहे मुसलमानों और अनुसूचित जातियों को कांग्रेस के विरूद्ध उभाड़ने का काम किया। ताकि यह आन्दोलन पंगु बन जाये और अपने इस घिनौने खेल में वह काफी हद तक सफल भी हो गए।
अनुसूचित जातियां तो नहीं टूटी लेकिन पाकिस्तान मिलने के ख्वाब में मुसलमान आन्दोलन से अलग हो गए। क्रिप्स की हकीकत सामने आने पर कांग्रेस नेताओं के हाथों के तोते उड़ गये थे। अब उनकों ब्रिटिषों की चालबाजी प्रत्यक्ष दिख रही थी।
अब कांग्रेस और ब्रिटिष साम्राज्य के बीच कटुता बढ़ गयी थी। कांग्रेस ने क्रिप्स के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उधर ब्रितानी सरकार कांग्रेस को कुचलने की तैयारियों में जुट गयी।
इस जनक्रांति का एक अहम पक्ष राश्ट्रवादी नेता सुभाश बोस (नेताजी) का ‘लाल किला दिल्ली पर फतह’ का संकल्प अभियान भी था। वेष बदलकर काबुल होते हुए जर्मनी पहुॅचने वाले नेताजी सुभाश चन्द्र बोस ने भारत को आजाद कराने के लिए यूरोप में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों के सहयोग से जून 1942 में जिस इण्डियन नेषनल आर्मी का गठन किया।
जो बाद में ‘आजाद हिन्द फौज’ के नाम से जानी गयी। इस सेना में जापान की जेलों में कैद सोलह हजार भारतीय सैनिक स्वेच्छया “ाामिल हुए। इसमें वह युवक भी थे जिन्हे जबरन पकड़ कर ब्रिटिषों ने महायुद्ध में झोंक दिया था।
Revolution of Ballia | History of Ballia | Bagi Ballia Revolution भाग 1
जब नेताजी सुभाश चन्द्र बोस ने लाल किले पर कब्जा के संकल्प के साथ ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ के नारे ओर ‘जय हिन्द’ के अभिवादन के साथ भारत की पूर्वी सीमा पर मोर्चा खोल अंग्रेजों की सेना को रौदना “ाुरू किया।
तो बलिया के गॉव-गॉव में तैयार सेनिकों को जोष बढ़ने लगा। इस ‘आजाद हिन्द फौज’ में भी बलिया के युवाओं की अच्छी भागीदारी थी। सीमा से मिल रही खबरें बलिया के ग्राम रक्षक दल, कौमी सेवादल और किसान संगठन के कार्यकत्ताओं को अंगे्रजो से दो-दो हाथ करने को उकसा रही थी।
क्रिप्स मिषन को कांग्रेस द्वारा नकारे जाने और कुछ मुस्लिम नेताओं के साथ आ जाने के बाद ब्रिटिष “ाासन स्वेच्छाचारिता पर उतर आया। इन लोगों ने महात्मा गांधी की मार्मिक अपील को निश्ठरता से ठुकरा दिया और दमन पर उतर आये।
तब विवष होकर भारत में संसार की सबसे बड़ी अहिंसक जनक्रांति 9 अगस्त 1942 का सूत्रपात हुआ। जिसमें बलिया ने अपने पुरूशार्थ से मात्र 12 दिनों के अन्दर ब्रितानी साम्राज्य को अपदस्थ करके अपनी स्वतंत्र सरकार बनाकर उसे लोकतांत्रिक तरीके से सफलता पूर्वक ‘सुराज’ के रूप में चलाकर संसार के लिए अपनी आजादी का उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।
यहां यह भी बताना समीचीन होगा कि 16 अक्टूबर 1925 में जब पूज्य महात्मा गांधी बलिया आये थे। तब उन्होंने आजादी की लड़ार्इ में बलिया के योगदान की सराहना करते हुए।
इसे ‘यूपी की बारदौली’ के गौरव पूर्ण खिताब से नवाजा और संकल्प दिलाया कि आपको यह जालिम (ब्रिटिष) सरकार नहीं रखनी है । पूज्य बापू का यह वाक्य बलियावासियों के लिए मंत्र बन गया और 17 साल बाद 1942 में बलिया ने उसे पूरा कर दिखाया।
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