Dadri Mela Ballia | Ballia Ka Dadri Mela |बलिया में दादरी मेला

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Dadri Mela Ballia | Ballia Ka Dadri Mela |बलिया में दादरी मेला उ0प्र0 के बलिया जिले मे कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले ददरी मेले को पाँच हजार ईसा पूर्व प्रचेता – ब्रह्मा जी के छोटे पुत्र महर्षि भृगु ने अपने प्रिय शिष्य दर्दर मुनि द्वारा गंगा नदी की विलुप्त हो रही धारा को बचाने के लिए सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से भृगुक्षेत्र मे लाकर दोनो नदियो का संगम कराने और अपने ग्रन्थ भृगु संहिता के लोकार्पण पर किया था।

गंगा – तमसा की जलधाराओ की टकराहट से निकल रही दर्र -… दर्र , घर्र – घर्र की ध्वनि पर महर्षि ने अपने शिष्य का नाम दर्दर और सरयू नदी का नाम घार्घरा रख दिया । महर्षि भृगु के इस आयोजन मे 88हजार लोगो ने भाग लिया था ।

यह परम्परा इतने दिनो बाद आज भी अनवरत चल रही है । यह भोजपुरी क्षेत्र के गौरवपूर्ण अतीत की वह अनुपम परम्परा है ,जिसमे अध्यात्म , कला , लोकजीवन , साहित्य विकास से लेकर जीवन हर विधा समाहित है ।

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इस अतीत मे यहाँ के बहादुर निवासियो द्वारा पूरे एशिया महाद्वीप से लेकर अफ़्रीका , आस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका तक को आबाद करने की कहानी दबी है ।

पूरे भारत मे महर्षि भृगु के तीन स्थान है । पहला हिमालय का मंदराचल पर्वत , दूसरा विमुक्त क्षेत्र बलिया जिसे भृगु – दर्दर क्षेत्र कहा जाता है । तीसरा स्थान गुजरात प्रान्त का भड़ौच जिसे भृगु कच्छ कहा जाता है । इसे भृगु पुत्र च्यवन ने अपने श्वसुर राजा शर्याति की मृत्यु के बाद आबाद किया था ।

महर्षि भृगु ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण भाग को बलिया के भू- भाग को विकसित करने मे लगाया । पहले यहां जंगली जातियां रहती थी । जिसमे कुछ नरभक्षी भी थी । महर्षि ने इन्हे शिक्षित किया , जीवन जीने की कला सिखाया ।

ऐसे कार्तिक पूर्णिमा पर अमृतसर सरोवर मे गुरु नानक जयन्ती के नाते , वाराणसी मे देव दीपावली के नाम से गंगा – वरुणा संगम पर, ऐसे ही हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक श्रद्धालुजन स्नान करते है । इसके अलावे भी विभिन्न धार्मिक सरोवरो , नदियो मे स्नान पूजन की परम्परा है।

लेकिन पद्मपुराण के अनुसार सभी पवित्र नदी – सरोवर सारे देवता और तीर्थ कार्तिक पूर्णिमा के दिन जब भगवान सूर्य तुला राशि मे होते है , तब विमुक्त क्षेत्र – भृगु दर्दर क्षेत्र बलिया मे पाप मोचन शक्ति प्राप्त करने आ जाते है । ये सभी तीर्थ अपने वर्षो से धोये पापो को इस विमुक्त क्षेत्र मे धोकर नये पापो का मोचन करने की शक्ति यहां से लेकर अपने -अपने क्षेत्रो मे लौटते है।

बलिया जिले के कोटवा नारायणपुर से लेकर बिहार छपरा के दिघवारा तक जो भी प्राणी गंगा नदी तट पर कार्तिक महिने मे कल्पवास करता है । उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ जाती है । बीमार मनुष्य निश्चित रुप से निरोग हो जाएगा ।

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इसके लिए उसे अपने कल्पवास के स्थान के चारो ओर तुलसी का बिरवा लगाना चाहिए । बासी मुहँ तुलसी के पत्ते खाना चाहिए ।

जिसे डाक्टरो ने मौत की तारीख बता दी हो उसके लिए यह… रामबाण औषधि है ।

मुझे यह बात एक सिद्ध महात्मा ने हिमालय मे बताया था ।

वैसे भी यह लोकमान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर बलिया संगम मे स्नान करने से साल भर तक बीमारियां नही होती है ।

एक और मजेदार जानकारी जिस युवती को ससुराल जाकर उसी साल अपनी गोद भरनी हो । उसके लिए भी यहाँ गंगा – तमसासंगम पर नहाना फ़ायदे का रहेगा ।

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संगम पर नहाना फ़ायदे का रहेगा ।

इसीलिए आज भी मऊ, देवरिया , सीवान , छपरा , सासाराम तक से परिवार वाले ससुराल जाने वाली लड़कियो को ददरी नहाने ले आते है ।

आयुर्वेद और खगोल विज्ञान के अनुसार _

बलिया मे ग़ंगा – तमसा का जो भू- क्षेत्र है , वह पृथ्वी का ऐसा भूभाग है जहाँ पूरे कार्तिक माह मे चन्द्रमा की किरणे यहाँ के नदी ,सरोवरो के जल को आरोग्यदायिनी शक्ति से भर देती है ।

एक और महत्वपूर्ण बात है कि गंगा का जल देश के अन्य शहरो मे चाहे जितना प्रदूषित हो बलिया मे आकर वह आज भी स्वच्छ हो जाता है । इसका कारण यहाँ की सफ़ेद रेत (बालू ) है । सूर्य की किरणे भी इस भू-भाग पर लम्बवत गिरती है ,

जिससे प्राण ऊर्जा यहाँ के नदी सरोवरो मे बढ जाती है । शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक इस भू – भाग को ब्रह्माण्ड से विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है । इसीलिए इसका इतना महत्व है ।

Dadri Mela Ballia | Ballia Ka Dadri Mela

पद्मपुराण के अनुसार _

*जो पुण्य काशी मे तपस्या करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने , रणभूमि मे वीरगति प्राप्त करने से प्राप्त होता है । उतना पुण्य कलियुग मे दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा सगम मे स्नान करने मात्र से मिलता है ।

**जितना पुण्य पुष्कर तीर्थ , नैमिषारण्य तीर्थ सेवन करने , साठ हजार वर्षो तक काशी मे तपस्या करने से प्राप्त होता है ।उतना पुण्य कलियुग मे दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा… सगम मे स्नान करने मात्र से मिलता है ।

***सभी प्रकार के यज्ञो और दान से जो पुण्य प्राप्त होता है , वह सम्पूर्ण पुण्य कलियुग मे दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा सगम के स्पर्श – दर्शन करने मात्र से मिलता है ।

****जो मनुष्य दर्दर क्षेत्र मे जाने के लिए अपने घर से प्रस्थान करता है , उसी समय से उसके सारे पाप रोने लगते है ,और भूत – प्रेत ग्रस्त लोगो के प्रेतादि व्याकुल हो जाते है ।

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