Birth Place of Parshuram | ब्रह्मर्षि परशुराम की जन्मभूमि : खैराडीह – खैरागढ़ बलिया ।
ब्रह्माज्ञानी ऋषि परशुराम की जन्मभूमि है बलिया ।
महर्षि भृगु के प्रपौत्र , ऋचीक ऋषि के पौत्र , जमदग्नि पुत्र ब्रह्मर्षि परशुराम का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जिले की वर्तमान बेल्थरारोड तहसील के खैराडीह गाँव में हुआ था । घाघरा नदी का दक्षिणी तट स्थित खैराडीह – खैरागढ़ का प्राचीन जमदग्नि आश्रम है ।
इस जमदग्नि आश्रम के भग्नावशेष का चित्र बलिया गजेटियर मेंं छपा है । इस पुरातात्विक स्थल का सबसे पहला सर्वेक्षण ब्रिटिश पुरोविद् कर्निंघम ने 1875 ईस्वी में किया था । आर्कोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया वाल्यूम 16 में कर्निंघम ने यहाँ 30 एकड़ मे फैले खण्डहर का उल्लेख किया है । उन्होंने इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण 1600 फीट और चौड़ाई पूरब से पश्चिम 1500 फीट तथा ऊँचाई 15 फीट लिखा है ।
पुरोविद् ए.सी.कार्लाइल ने 1879-80 ईस्वी मे खैराडीह – खैरागढ़ पुरातात्विक स्थल से पाँच मुद्राएं प्राप्त किया था । इनमें से तीन मुद्राएं इन्डों – सीथियन शैली की है जो कुषाण काल की हैं । चौथी मुद्रा बहुत बड़ी और मोटी है , उसपर एक पुष्प बना हुआ है । पाँचवी मुद्रा पर बुद्ध प्रतिमा बनी हुई है । इन शोधकर्ताओं की शोध से इतनी बात तो प्रमाणित हो जाती है कि यहाँ 1000 ईसापूर्व समृद्ध मानव बसति थी ।
इस पुरातात्विक स्थल की खुदाई 1981 ईस्वी मे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्व संकाय के प्रो. के.के. सिन्हा के नेतृत्व में डा. वीरेन्द्र प्रताप सिंह , श्री लालता मिश्र तथा श्री अजय श्रीवास्तव द्वारा कराई गई है । इस खुदाई में भी यह एक हजार ईसा पूर्व की मानव बसति प्रमाणित हुआ ।
इतिहासकार पुरोविद् मार्टिन की पुस्तक ईस्टर्न इण्डिया मे इस बात का उल्लेख मिलता है कि खैराडीह के सामने घाघरा नदी के पार उत्तरी तट पर स्थित भागलपुर जिसका मूल नाम भार्गवपुर है , भृगुवंशियों के द्वारा बसाया गया था और खैराडीह-खैरागढ़ तथा भार्गवपुर (वर्तमान देवरिया जिले का भागलपुर ) दोनों संयुक्त नगर थे । घाघरा नदी की कटान ने दोनों को दो भाग में विभाजित कर दिया है ।
Birth Place of Parshuram | ब्रह्मर्षि परशुराम की जन्मभूमि
खैराडीह के बारे में एक स्थानीय कहावत है –
चाक डोले चकबंबक डोले , खैरा पीपर कबहूँ न डोले ।
यहाँ पर एक पीपल का विशाल पेड़ है , जो काफी दूरी मे फैला हुआ है । यह घाघरा नदी की बाढ़ से इस गाँव की रक्षा करता है ।
ब्रह्मर्षि परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा इनके पितामह ऋचीक, पिता जमदग्नि से तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वामित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई।
प्रागैतिहासिक काल में भृगुवंशी और हैहयवंशी इन दोनों का ही आर्यावर्त में प्रभाव था। हैहयराज सहस्त्रार्जुन परशुराम के सगे मौसा थे। एक बार जमदग्नि मुनि ने अपनी पत्नी उत्तर कोसल राजवंश (अयोध्या ) की राजकुमारी रेणुका को गंधर्वराज चित्ररथ के साथ विहार करते देख लिया तब अपने पुत्र परशुराम को आज्ञा देकर उनसे परशुराम की मां रेणुका का सिर कटवा दिया।
इस घटना से दु:खी उनकी मौसी ने अपने पति सहस्त्रार्जुन से जमदग्नि का आश्रम जलवा दिया। दोनों वंशों की यह रार दो पीढि़यों तक चली।
परशुराम हैहयवंशी राजपुत्रों को अपने परशु से काटते रहे। परशुराम सारण से दोहरी घाट तक घाघरा के दक्षिण तट पर विचरण करते रहते थे। बलिया जिले के मनियर में उनका बसेरा था। उनके ननिहाल अयोध्या के राजा दशरथ जब अपने चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह करके जनकपुर से लौट रहे थे, तब वर्तमान दोहरी घाट में परशुराम ने अपने गुरु भगवान शिव के धनुष भंग करने का आरोप लगाकर युद्ध के लिए रोका तब भगवान राम ने उन्हें रघुकुल का पूज्य पुरुष बताते हुए समझाया। इस पर परशुराम शस्त्र त्याग कर हिमालय चले गये।
हिमालय का नंदन कानन उन्हीं का लगाया सुरम्य उपवन है जिसे 1931 ई. में खोजा गया। कहते हैं लंका में मूर्छित पड़े लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी इसी उपवन से हनुमान ले गये थे।
ब्रह्मर्षि परशुराम के निवास एवं जन्म स्थान को लेकर अनेक स्थानों का दावा है ।
Birth Place of Parshuram | ब्रह्मर्षि परशुराम की जन्मभूमि
परशुराम जी की जन्म भूमि होने का एक दावा जमदग्नि आश्रम जमैथा गाँव जौनपुर का है, तो दूसरे कुछ लोगों का कहना है कि इनका जन्म जमानियां गाजीपुर मे हुआ था । एक और दावा देवरिया जिले के भागलपुर से 15 किमी उत्तर दिशा में स्थित सोहनाग ( सोहंनगर ) का भी है । यहाँ पर परशुरामजी का मंदिर है और अक्षयतृतीया को मेला लगता है ।
परशुराम जन्मभूमि का दावा करनेवाले स्थानों में मध्यप्रदेश के इंदौर जिले का वह जानापाव पहाड़ी गाँव भी है , जहाँ सात नदियां बहती है ।
छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले में स्थित कलचा गाँव भी है जो देवगढ़ से दो किमी पर है ।
उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जिले का जमदग्नि आश्रम जलालाबाद भी इनकी जन्मभूमि होने का दावा करता है ।
इसके अतिरिक्त हरियाणा में कैथल से 28किमी उत्तर पूर्व मे स्थित जाजनापुर और नांदेड़ महाराष्ट्र तथा अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी तट पर स्थित परशुराम कुण्ड का भी दावा है ।
हम बिन्दुवार इन दावों का विश्लेषण करें , इसके पहले हमें परशुराम जी की वंशावली , तत्कालीन देश काल परिस्थितियों का विश्लेषण कर लेना उचित होगा ।
ब्रह्मर्षि परशुराम के परदादा महर्षि भृगु प्रचेता ब्रह्मा जी के पुत्र हैं और इनका जन्म ब्रह्मलोक – सुषानगर ( वर्तमान ईरान ) मे हुआ था । देवासुर संग्राम के समय इनकी पत्नी दिव्या देवी जो दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पुत्री थी , और परशुरामजी के दादा ऋषि ऋचीक की माता थींं । यह अपने पिता की असुर सेना की मदद कर रही थीं , जिससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भृगुपत्नीं दिव्या देवी का सिर काट दिया था ।
श्रृणु राजन् पुरा वृत्तं तदा देवासुरे युधि ।। ११
दैत्याः सुरैर्भत्स्यमाना भृगुपत्नीं समाश्रिताः ।
तया दत्ता भयास्तत्र न्यवसन्नभयास्तदा.।।१२
तया परिगृहीतांस्तान् दृष्ट्वा क्रुद्धः सुरेश्वरः ।
चक्रेण शितधारेण भृगुपत्न्याः शिरोSहरत् ।।१३
बा.रा.५१सर्ग
इसके उपरांत महर्षि भृगु के दादा दण्डाचार्य मरीचि ऋषि के आदेश पर महर्षि भृगु विमुक्ति भूमि जिसे वर्तमान में भृगुक्षेत्र बलिया कहा जाता है , यहाँ आये थे । यहीं से उन्होंने अपने पुत्र , परशुराम जी के दादा ऋचीक का विवाह गाधिपुरी ( वर्तमान गाजीपुर जिला ) के राजा गाधि की पुत्री सत्यवती के साथ एक सहस्त्र ईरानी घोड़े दहेज में देकर किया था । जिनसे परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि का जन्म हुआ था ।
जमदग्नि ऋषि का विवाह तत्कालीन उत्तर कोसल (अयोध्या ) राजवंश की राजकुमारी रेणुका के साथ हुआ । इस विवाह के लिए भी भृगुवंशियों ने भारी दहेज दिया था ।
इस कालखंड मे भृगुवंशी यहाँ अपने को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे । इसलिए इनका मध्यप्रदेश , हरियाणा ,महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ , अरुणाचल प्रदेश या उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जाने का प्रश्न ही नहीं उठता है ।
फिर भी पाठकों की संतुष्टि के लिए मैं इन जमदग्नि और आश्रमों पर प्रकाश डालना उचित समझता हूँ ।
मध्यप्रदेश के जानापाव पहाड़ी पर स्थित मुंड़ी गाँव का चोरल ,मोरल , कारम , अजनार ,गंभीर ,चंबल और उतेड़िया नदियों से समृद्ध सुरम्य वन पर्वत प्रदेश परशुराम जी की माता रेणुका को बहुत प्रिय था , वह अपनी बहन राजा सहस्त्रार्जुन की पत्नी के साथ यहाँ विहार करने जाती थीं । छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित कलचा गाँव की शतमहला पहाड़ी भी ऐसा ही इन दोनों राजकुमारियों के विहार का स्थान है ।
परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि को पहली बार इस भू-भाग के बाहर अगस्त्य मुनि के साथ उनके पितामह ऋचीक ऋषि ने कोंकण प्रदेश में शाहजहांपुर भेजा था ।
अरुणाचल प्रदेश में क्षत्रियों का संहार एवं अपनी माता का बध करने के बाद परशुराम जी गये थे , जिसका परशुराम कुण्ड प्रसिद्ध है ।
Birth Place of Parshuram | ब्रह्मर्षि परशुराम की जन्मभूमि
जौनपुर के जमैथा , गाजीपुर का जमानियां , देवरिया जिले के सोहनाग और बलिया जिले का मनियर ब्रह्मर्षि परशुराम के लालन – पालन , विचरण के स्थान है , स्वाभाविक रूप से जिस जमदग्नि आश्रम परशुराम जन्मभूमि खैराडीह – खैरागढ़ बलिया के पुरातात्विक साक्ष्य हम रख रहे हैं , वहाँ के जमदग्नि आश्रम की खुदाई में 24 फीट चौड़ी 12 फीट ऊंची पक्के कमरों की दीवारें मिली है । 1983 की खुदाई में 18″×12″×3″ आकार की ईंटें मिली थी ।
शिवकुमार सिंह कौशिकेय
साहित्यकार / जिला समन्वयक ,
राष्ट्रीय पाण्डुलिपि संरक्षण मिशन
बलिया (भारतसरकार )